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________________ जैन गुर्जर कवियों को हिन्दी कविता ३०३ उदयराज : भजन छत्तीसी । 'बावना' संज्ञक रचनाएं विशेष महत्वपूर्ण है । इन्हें 'कक्क', मातृका आदि भी कहा गया है । 'कक्को' गुजराती साहित्य का प्राचीन एवं समृद्ध साहित्य प्रकार रहा है | हिन्दी में इसे अखरावट भी कहते है | अपभ्रंश काल से ही ऐसी रचनाओं का प्रारम्भ होता है। तेरहवीं-चौदहवीं शती की ऐसी कुछ रचनाए-'शालिभद्र कक्क', 'हा मातृका', 'मातृका चाउपई', आदि 'प्राचीन गूर्जर काव्य संग्रह' में प्रकाशित है | १ इन्हें बावनी के पूर्व रूप भी कह सकते हैं । १६ वीं गती से ऐसी ऐसी रचनाओं के लिए 'बावनी' संज्ञा व्यवहृत हुई है। इनमें वर्णमाला के ५२ वर्णों के प्रत्येक वर्ण ने प्रारम्भ करके प्रासंगिक पद्य ५२ या उससे कुछ अधिक भी रचे जाते हैं । काव्य की मौलिकता को सुरक्षित रखने के लिए भी संभवतः इन कवियों ने अपने मुक्तकों में इस वन्धन को स्वीकार किया हो । जैन कवि तो अपने साहित्य के मौलिक स्वरूप के संरक्षण में अधिक सजग रहे है । हिन्दी, राजस्थानी तथा गुजराती भाषाओं में जैन कविओं द्वारा रचित अनेक बावनियां प्राप्त हैं। हिन्दी में बावनियों की मुदीर्घ परम्परा का उल्लेख डॉ० अम्नाशंकर नागर ने अपने ग्रन्थ 'गुजरात के हिन्दी गौरव ग्रन्थ' में किया है | २ वर्ण और व्यंजन के ५१ अक्षर हैं। इन अक्षरों का क्रम इस प्रकार रखा गया है-ओं (न मो सिद्ध) अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लृ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, क, ख, ग, घ, उ., च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, ग, प, स, ह, क्ष | १७वीं एवं १८वीं शती में यह काव्यरूप अत्यधिक लोकप्रिय रहा है | अक्षर को ब्रह्मरूप मानकर, प्रायः सभी ने अपनी अपनी वावनियों में प्रथम छन्द 'ओं' से प्रारम्भ किया है । विशेषतः जैन कवियों की वावनियों में मंगलाचरण का सूत्र 'ॐ नमः सिद्धम्' रहा है । धार्मिक एवं नैतिक उपदेश देने के लिए जैनों में इस प्रकार की रचनाओं का विशेष प्रचलन था । छन्द विशेष में रची होने से इनके नाम - 'दोहा बावनी', 'कुण्डलिया वावती', 'छप्पय वावनी' आदि रखे गये हैं । विषय के अनुसार रचित रचनाओं के नाम, 'धर्म बावनी', 'गुण बावनी', 'वैराग्य बावनी', आध्यात्म बावनी' आदि मिलते हैं । 'वावनी' संज्ञक प्राप्त रचनाएँ इस प्रकार है । उदयराज : गुण बावनी । १. प्राचीन गूर्जर काव्य संग्रह, गायकवाड़ प्राच्य ग्रन्थमाला, अङ्क १३, १९२० । २. गुजरात के हिन्दी गौरव ग्रन्थ, डॉ० अम्वाशंकर नागर, पृ० ४१
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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