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जन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
उत्तर गुजरात की सीमा शिरोही और मारवाड़ तक पहुंचती है। इसमें सिंध का रेगिस्तान तथा कच्छ का रेगिस्तान भी या जाता है । दक्षिण गुजरात की सीमा दमण गंगा और थाणा जिला तक और पूर्वी गुजरात की सीमा घरमपुर से पालनपुर के पूर्व तक मानी जाती है।' इस प्रकार गुजरात का भापाकीय विस्तार अधिक व्यापक है। - (६) प्रस्तुत प्रवन्ध में "हिन्दी" शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया गया है ।
आचार्य हजारीप्रसाद जी ने भी "हिन्दी" शब्द का प्रयोग एक रूपा भाषा के लिए न बताकर एक भापा परम्परा के लिए बताया है।२ हिन्दी राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, विहार तथा मध्य प्रदेश के विशाल भूभाग की भाषा है। इसकी विभापाओं में राजस्थानी, अवधी, ब्रजभाषा और खड़ी बोली मुख्य हैं । ये चार भापाए अपने में समृद्ध एवं स्वतः अस्तित्व रखती हुई भी राष्ट्रभाषा के सुदृढ़ सिंहासन की आधार स्तम्भ
बनी हुई हैं।
हिन्दी का विस्तार अत्यधिक व्यापक है-अपभ्रंश, डिंगल, अवहट्ठ मादि भाषाओं का भी हिन्दी में समावेश कर वंगाल के बौद्ध-सिद्धों के पदों, राजस्थान के प्रशस्ति काव्यों और मैथिल-कोकिल विद्यापति के पदों को हमने अपना लिया है इसी प्रकार पंजाव, गुजरात, महाराष्ट्र तथा वंगाल के सन्तों की सधुक्कड़ी वाणी को भी हिन्दी नाम से ही अभिहित किया गया है । उर्दू भी हिन्दी की ही एक विशिष्ट शैली है।
हिन्दी के इस व्यापक अर्थ को दृष्टि समक्ष रखकर ही हिन्दी की विभिन्न भाषाओं में मजित तथा प्रादेशिक प्रभावों से प्रभावित जैन-गुर्जर कवियों के साहित्य के लिए "हिन्दी" शब्द का प्रयोग किया गया है । ५. प्रस्तावित योगदान .
प्रस्तुत प्रबन्ध की मौलिकता, उपलब्धि तथा उसके महत्त्व के सम्बन्ध में एक-दो शब्द कह देना अप्रासंगिक न होगा
विषय से सम्बन्धित समस्त प्राप्त सामग्री का विधिवत् अध्ययन कर उसे वैज्ञानिक पद्धति से वर्गीकृत करके उसकी समाचोलना करने का यह मेरा अपना एवं मौलिक प्रयास है।
१. गुजरात मने एनु साहित्य, श्री कर मा० मुन्शी, पृ० १, २ २. हिन्दी साहित्य; आ० हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ०२