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भूमिका खण्ड
४. प्रस्तुत अध्ययन की मर्यादाएं
गुजरात के जैन कवियों की हिन्दी कविता का अध्ययन करने के पूर्व निम्नलिखित बातों का स्पष्टीकरण कर लेना अधिक समीचीन होगा(१) कवियों एवं कृतियों से सम्बन्धित उद्धरण सदैव हस्तलिखित अथवा मुद्रित
मूलग्रन्थों से ही लिये गये हैं। गुजराती विद्वानों द्वारा सम्पादित ग्रन्थों से काव्य पंक्तियों और पदों को पाठ की दृष्टि से यथावत् स्वीकार कर लिया गया है। पाठशुद्धि की अनधिकार चेष्टा में उलझना लेखक ने उपयुक्त नहीं समझा। लगभग सभी स्थानों पर दिये गये सन्-संवत् प्रायः विद्वानों के मतानुसारही हैं, इनका निर्णय करना मेरा प्रतिपाद्य नहीं है। काल निर्धारण के
सम्बन्ध में भी यथासम्भव सतर्कता रखी गई है, और . जहाँ कहीं आवश्य• - कता प्रतीत हुई है विद्वानों के मतों को यथावत् कहना ही उचित समझा
गया है । प्रकरण २ और ३ में कवियों के सामने दिये गये सम्वत् अधिकांशतः उनकी उपस्थिति के काल के सूचक हैं । जैन-गुर्जर कवि से मेरा अभिप्राय है-जो जैन धर्मी परिवार में जन्मे हो अथवा जैन धर्म में दीक्षित हुआ हो। जिसका जन्म गुजरात में हुआ हो । जिसने अपनी साधना एवं प्रचार-विहार का क्षेत्र गुजरात चुना हो अथवा जो गुजरात की भूमि से सम्पृक्त न होकर भी गुजराती के साथ
हिन्दी में काव्य रचना करता रहा हो । (४) धर्म और दर्शन मेरा विषय नहीं है । आवश्यकता की पूर्ति के लिए उसका • अध्ययन या विश्लेषण काव्य तत्त्व की भूमिका के स्वरूप में ही किया
गया है। -(५) भौगोलिक दृष्टि से गुजरात की सीमाएँ इस प्रकार हैं-उत्तर में बनास,
दक्षिण में दमणगंगा, पूर्व में अरावली और सह्याद्रि गिरि मालाएं तथा पश्चिम में कच्छ की खाड़ी और अरवसागर ।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखने से गुजरात की राजनीतिक सीमाओं में समय समय पर मारवाड़ का वृहद् अंश ( ११वीं शती) तथा मेवाड़ का कुछ अंश समाविष्ट हुआ दिखाई पड़ता है ।
- गुजरात प्रदेश के आधार पर इस प्रदेश की भापा का नामकरण गुजराती हआ है । भाषा की दृष्टि से इस प्रदेश की सीमाएं अधिक विस्तृत हैं। अतः व्यापक अर्थ में गुजराती भाषा भापी क्षेत्र को भी गुजरात कहा जाता है। भापा की दृष्टि से