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________________ जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता २६५ को छढालिया कहा गया है । एक ढाल के अन्त में दोहा या छन्द का प्रयोग कर उसे पूर्ण किया जाता है और तदनन्तर दूसरी ढाल का आरम्भ किया जाता है। कुछ बड़ी रचनाओं में शताधिक ढालों का प्रयोग हुआ है। चौढालिया नामक एक रचना समयसुन्दर की प्राप्त है । 'दानादि चौढालिया' दान-धर्म विषयक इनकी यह कृति सामान्यतः उल्लेखनीय है । प्रत्येक ढाल के आरम्भ में तर्ज या देशी की प्रारंभिक पंक्ति दे दी जाती है । इस प्रकार इन कवियों की ढाल-बद्ध रचनाओं में प्राचीन विमिन्न लोकगीतों का पता चलता है। गजल, छन्द; नीसाणी आदि : __ गजल फारसी साहित्य का एक छन्द विशेप है। आरम्भ में उसमें केवल प्रेम-सम्बन्धी विषय ही समाविष्ट होते थे। गुजरात में फारसी साहित्य के प्रभाव से गजल-साहित्य-प्रकार आरम्भ हुआ। आज की गजलों में विपय वैविध्य है, मात्र प्रेम का सीमित क्षेत्र नहीं। जैन कवियों ने भी गजलें लिखी हैं, पर न तो इसमें प्रेम की बात है और न फारसी के गजल-छन्द विशेष का निर्वाह है। जैन कवियों की गजल संजक रचनाओं में नगरों और स्थानों का वर्णन है। कवि जटमल की 'लाहोर गजल', राजस्थानी कवि खेता की 'चित्तड़ री गजल', दीपविजय की 'वड़ोदरानी गजल' आदि गजलें प्रसिद्ध हैं। इनकी रचना एक विशेष प्रकार की शैली में हुई है। ऐसी गजल संजक रचनाओं में प्राकृतिक वर्णन, धार्मिक महत्ता तथा इतिहास का भी निरूपण हुआ है । संभवत: इस प्रकार के साहित्य का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन तथा स्थलपरिचय कराना रहा होगा । आलोच्य युगीन कवियों में मात्र निहालचंद नामक कवि की नगर या स्थान वर्णनात्मक गजल 'बंगाल देश की गजल' प्राप्त है । इसमें मुर्शिदाबाद का वर्णन है। छन्द, नीसाणी आदि भी रचना के विशेष प्रकार है। छन्द से तात्पर्य अक्षर या मात्रा मेल से बनी कविता है। ऐसे छन्दों में जैन कवियों ने विशेषत: देवीदेवताओं की स्तुति की है । इस प्रकार स्तुति में रचित छन्दों के लिए इन कवियों ने शलोक, पवाड़ा आदि संज्ञाएं भी दी है । कुछ कवियों ने ऐसी रचनाओं की संज्ञा छन्द ही रखी है। कभी-कभी विभिन्न छन्दों में रचित कृति को भी 'छन्द' संज्ञा से अभिहित किया जाता रहा है, उदाहरणार्थ हेमसागर की 'छन्दमालिका' ऐसी ही रचना है।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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