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________________ २८६ आलोचना खंड गब्द प्रयोग स्वाभाविक रूप में हुए हैं। उनकी शब्द योजना, वाक्यों की बनावट तथा भापा की लक्षणिकता या ध्वन्यात्मकता भी उल्लेखनीय है। ३ अधिकांश कवियों ने भापा को संगीतात्मकता और अधिक मनोरम तथा प्रभावोत्पादक बनाने का प्रयास किया है। इन कवियों में संगीत मात्र मुखरित ही नहीं हुआ, स्वर, ताल के साथ स्वयं मूर्तिमंत हुआ है। ऐसे स्थलों में भापा की कोमलकान्तता और प्रवहमानता देखते ही बनती है। ४ इनकी वैविध्यपूर्ण छन्द योजना में भी मंगीत की गूज है, जो विभिन्त प्रकार की तालों, रागिनियों, देशियों आदि के द्वारा हृदय के तार झंकृत कर देती है। यद्यपि इन कवियों की कविता में वणित और मात्रिक दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है तथापि मात्रिक छन्दों की प्रधानता है । दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त, कुंडलियां, सवैया, छप्पय, पद आदि छन्द इनके प्रिय तथा अधिकाधिक प्रयुक्त छन्द्र रहे हैं। ५ जन-गूर्जर कवियों ने अलंकारों का भी प्रयोग किया है, पर उनको प्रमुखता नहीं दी है। कविता में अलंकार स्वभावतः ही आये है। शब्दालंकारों में अनुप्राम और यमक तथा अर्थालंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक उदाहरणालंकार, उदात्त विरोधाभास आदि का सुन्दर एवं स्वाभाविक नियोजन इन की कविताओं में हुआ है । ६ जैन-गुर्जर कवियों ने प्रस्तुत के प्रति तीव भावानुभूति जगाने के लिए अप्रस्तुत की योजना की है। इसमें स्वाभाविकता, मर्मस्पर्शिता एवं भावोद्रेक की सक्षमता है। अपनी भौतिक आंखों से देखे पदार्थो का अनुभव कर, इन्होंने कल्पना द्वारा एक नया रूप उपस्थित किया है, जो वाह्य जगत् और अन्तर्जगत् का समन्वय स्थापित करता है। यही कारण है कि इनकी आत्माभिव्यंजना उत्कृष्ट बन पड़ी है । इन भावुक कवियों को तीव्र रसानुभूति की अभिव्यक्ति के लिए प्रतीकों का सहारा लेना पड़ा है। समग्रतः इन कवियों की भाषा में स्पष्टता, सरलता और यथार्थता है तथा शैली में विरक्त साधुओं-सी निर्मीकता है। इनमें न पांडित्य-प्रदर्शन है और न अलंकारों की भरमार । शब्दाडम्बरों से ये कवि दूर ही रहे हैं ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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