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________________ प्रकरण : ६ आलोच्य युग के जन गूर्जर कवियों की कविता में प्रयुक्त विविध काव्यरूप (१) (विपय तथा छन्द की दृष्टि से ) रास, चौपाई अथवा चतुष्पदी, बेलि, चौढा लिया, गजल, छन्द, नीसाणी, कुण्डलियां, छप्पय, दोहा, सवैया, पिंगल आदि। (२) ( राग और नृत्य की दृष्टि से ) विवाहलो, मंगल, प्रभाती, रागमाला, बथावा, गहूँली आदि । (३) (धर्म-उपदेश आदि की दृष्टि से ) पूजा, सलोक, कलश, वंदना, स्तुति, स्तवन, स्तोत्र, गीत, सज्झाय, विनती, पद आदि । (४) ( संख्या की दृष्टि से ) अष्टक, बीसी, चौबीसी, बत्तीसी, छत्तीसी, बावनी, बहोत्तरी, शतक । (५) ( पर्व, ऋतु, मास आदि की दृष्टि से ) फाग, धमाल, होरी, बारहमासा, चौमासा आदि। (६) ( कथा-प्रवन्ध की दृष्टि से ) प्रबन्ध, चरित्र, संवाद, आख्यान, कथा, वार्ता आदि । (७) (विविध विषयों की दृष्टि से ) प्रवहण-वाहण, दीपिका, चन्द्राउला, चूनड़ी, मूखड़ी, आंतरा, दुवावेत, नाममाला, दोधक, जकड़ी, हियाली, ध्र पद, कुलक आदि ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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