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जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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_ 'मोती, 'प्रभात', 'उपा' आदि प्रतीकों द्वारा शाश्वत सौन्दर्य की अभिव्यक्ति इन कवियों ने की है । आनंदघन, विनयविजय, जिनहर्प, समयसुन्दर आदि ने इन प्रतीकों का इसी अर्थ में प्रयोग किया है।
'अमृत' आत्मानंद की अभिव्यक्ति का प्रतीक है । यशोविजय जी की कविता से एक उदाहरण दष्टव्य है
"जस प्रभु नेमि मिले दुःख डार्यो, राजुल शिव सुख अमृत पियो ।"?
आनन्दघन जी ने 'वर्षा बुद' तथा 'समुन्द' के द्वारा आत्मा और ब्रह्म की अभिव्यक्ति की है तथा आत्मा भी ब्रह्म में लय होने की दशा का सुन्दर निरूपण किया है।
"वर्षा बुद समुन्द समानी, खबर न पावे कोई,
आनन्दघन ह्र ज्योति समावे, अलख कहावे सोई ।।" इसी प्रकार 'दीपक' प्रकाशरूप ब्रह्म व 'चेतन रतन' जाग्रत आत्मा के लिए प्रयुक्त प्रतीक हैं
'तत्व गुफा में दीपक जोउ, चेतन रतन जगाउ रे, वहाला ॥". आत्मनान के लिए 'जान कुसुम' प्रतीक का प्रयोग देखिए
"ज्ञानकुसुम की सेजन पाइ, रहे अधाय अधाय ।"२
संक्षेपतः, इन कवियों ने सूक्ष्म भावों की अभिव्यक्ति एवं मार्मिक पक्षों का उद्घाटन करने के लिए प्रतीकों का आयोजन किया है। निष्कर्ष :
१ आलोच्य युगीन जैन-गूर्जर कवियों की वाणी साधारण जनसमाज के लिए रची जाने के कारण सरल तथा लोकाभिमुख रही है। उसमें प्रान्तीय मापाओं के शब्दों का सहज सम्मिश्रण होगया है । इन कवियों का एक मात्र उद्देश्य भापा को बोधगम्य एवं लोकभोग्य वनाना रहा है, अतः काव्य शास्त्रोचित नियमों के निर्वाह की विशेष परवाह नहीं की गई है । फिर भी भाषा के विकासोन्मुख रूप की दृष्टि से इन कवियों की भाषा का बड़ा महत्व है।
२ आनन्दधन, यशोविजय, जिनहर्ष, रत्नीति, कुमुदचंद्र आदि कवियों का भाषा की दृष्टि से बड़ा महत्व है। ऐसे कवियों का भाषा के रूप को सजाने और परिष्कृत करने में विशेष हाथ है । इनकी भापा में सरल, कोमल, मधुर तथा सवोध १. वही, पृ० ८५ । २. भजन संग्रह, धर्मामृत पं० बेचरदास विनयविजय के पद ३२ ।
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