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________________ जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता २७६ प्रतीक-विधान प्रतीक एक ऐसा विधान है जिसमें विचार अथवा अप्रस्तुत को पारम्परीय अर्थों में रूढ़ किसी रूप के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। वस्तुतः यह एक ऐसा प्रतिविधान है जो अमूर्त के लिए मूर्त अदृश्य के लिए दृश्य; अप्राप्य के लिए प्रस्तुत तथा अनिर्वचनीय के लिए वचनीय तत्वों को उपस्थित कर अभिव्यक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। इस प्रकार प्रत्येक प्रतीक सम्बन्ध, साहचर्य, परम्परा अशवा आकस्मिकता के कारण किसी अप्रस्तुत के लिए प्रस्तुत का विधान है। प्रतीक वाह्य प्रकृति से सम्बद्ध होने के कारण इन्द्रियगम्य अधिक होते हैं और अमूर्त भावनाओं की प्रतीति कराने में समर्थ होते हैं । इनसे भाषा में लाघव, अभिव्यक्ति में चमत्कार तथा विषय में व्यंग्यत्व बढ़ जाता है । आलोच्य युगीन जैन गूर्जर कवियों ने अपनी कविता में उपमान रूप में प्रतीकों का विशेप प्रयोग किया है। प्रभाव साम्य को लेकर आये इन प्रतीकों में भावोदवोधन या भावप्रवणता की शक्ति है । ये कवि अपनी मार्मिक अन्तर्दृष्टि द्वारा भावाभिव्यंजना के लिए पूर्ण सामर्थ्य से युक्त प्रतीकों का विधान कर सके हैं। भावोत्पादक और विचारोत्पादक जैसे भेद इन कवियों के प्रतीकों में नहीं कर सकते। वैसे भी भाव और विचार में सीमारेखा खींचना मुश्किल है। अध्ययन की सुविधा के लिए इन्हें हम निम्न चार भागों में विभक्त कर सकते हैं (१) दुःख, विकारादि के सूचक प्रतीक । (२) आत्माभिव्यंजक प्रतीक । (३) शरीर की विभिन्न दशाओं में अभिव्यंजक प्रतीक । (४) आत्मिक सुख एवं गुणों के अभिव्यंजक प्रतीक । प्रथम विभाग में भुजंग, विप, तम, संध्या, रजनी पंच, लहर, हस्ति, वन, मृग, मृगतृष्णा, मच्छ, दरिया आदि प्रमुख रूप से आते हैं। भुजंग : भूजंगम१, विपनागर भूमंगनि३ आदि शब्द प्रयोग द्वारा इन कवियों ने राग हेपादि की सूक्ष्म भावना की अभिव्यक्ति की है। अतः यह प्रतीक मन के विकारों को प्रकट करने के लिए आया है। ये विकार आत्मा की परतन्त्रता के कारण है १. मजन संग्रह धर्मामृत, पं० बैचरदासजी यशोविजयजी के पद, पृ० ५६ । २. आनंदधन पद संग्रह, पद नं० ४१ । ३. वही, पद, ३१ ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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