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________________ बनं गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता ૨૯૭ रूपक उपमा "पूरण चन्द्र जिसी मुख तेरो, दंत पंक्ति मचकुन्द कली हो। सुन्दर नयन तारिका गोभित, मानु कमल दल मध्य अली हो ।" -समयमुन्दर ___"प्यास न छीपइ दरस की, डूबि रही नेह-होजि ॥"२-जयवंतसरि सांगरूपक "नायकान रासी यह वागुरिन भासी खासी, लिए हांसी फांसी ताके पाश में न परना, पारधी अनंग फिरे मोहन धनुप धरे, पैन नयन वान खर तातें ताही डरना, कुच है पहार हार नदी रोमराई तृन, किसन अमृत ऐन बैन मुखि झरना, अहो मेरे मन-मृग खोल देख जान दृग, यह वन छोड़ि कहूँ और ठौर चरना ।"३--किगनदास उत्प्रेक्षा तनु शुध खोय घूमत मन एमें, मानु कुछ खाई मांग ।'४ --आनन्दघन मालोपमा 'जैसे तार हरनि के वृन्द सौं विराजै चन्द, जैसे गिरराज राजै नन्द वन राज सौ। जैसे धर्मगील सौं विराजै गच्छराज तैसे, राजै जिनचन्द्रसूरि संघ के समाज सौ ॥"५-धर्मवर्धन प्रौढोकित 'लिख्यो जु ललाट लेख तामें कहा मीन मेख, करम की रेख टारी हु न टरे है ।"६-~-किशनदान उदाहरण 'मान सीख मेरी व्हेगी ऐसी गति तेरी यह । जेसी मूठी ढेरी रास की ममान में ॥"७---किगनदास - १. सभमुन्दर कृत कुमुमांजलि, पृ० २६ । २. स्यूलिभद्र मोहन वेलि । ३. अम्बाशंकर नागर, गुजरात के हिंदी गौरव ग्रंथ, पृ० १६७ । ४. आनन्दघन पद संग्रह। ५. धर्मवीन ग्रंथावली, पृ० २३६ । ६. डॉ० अम्बागंकर नागर, गुजरात के हिन्दी गौरव नथ, पृ० १६२ । ७. वही, पृ० १८०॥
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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