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बनं गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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रूपक
उपमा "पूरण चन्द्र जिसी मुख तेरो, दंत पंक्ति मचकुन्द कली हो। सुन्दर नयन तारिका गोभित, मानु कमल दल मध्य अली हो ।"
-समयमुन्दर ___"प्यास न छीपइ दरस की, डूबि रही नेह-होजि ॥"२-जयवंतसरि सांगरूपक "नायकान रासी यह वागुरिन भासी खासी,
लिए हांसी फांसी ताके पाश में न परना, पारधी अनंग फिरे मोहन धनुप धरे, पैन नयन वान खर तातें ताही डरना, कुच है पहार हार नदी रोमराई तृन, किसन अमृत ऐन बैन मुखि झरना, अहो मेरे मन-मृग खोल देख जान दृग,
यह वन छोड़ि कहूँ और ठौर चरना ।"३--किगनदास उत्प्रेक्षा तनु शुध खोय घूमत मन एमें, मानु कुछ खाई मांग ।'४
--आनन्दघन
मालोपमा 'जैसे तार हरनि के वृन्द सौं विराजै चन्द,
जैसे गिरराज राजै नन्द वन राज सौ। जैसे धर्मगील सौं विराजै गच्छराज तैसे,
राजै जिनचन्द्रसूरि संघ के समाज सौ ॥"५-धर्मवर्धन प्रौढोकित 'लिख्यो जु ललाट लेख तामें कहा मीन मेख,
करम की रेख टारी हु न टरे है ।"६-~-किशनदान उदाहरण 'मान सीख मेरी व्हेगी ऐसी गति तेरी यह ।
जेसी मूठी ढेरी रास की ममान में ॥"७---किगनदास
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१. सभमुन्दर कृत कुमुमांजलि, पृ० २६ । २. स्यूलिभद्र मोहन वेलि । ३. अम्बाशंकर नागर, गुजरात के हिंदी गौरव ग्रंथ, पृ० १६७ । ४. आनन्दघन पद संग्रह। ५. धर्मवीन ग्रंथावली, पृ० २३६ । ६. डॉ० अम्बागंकर नागर, गुजरात के हिन्दी गौरव नथ, पृ० १६२ । ७. वही, पृ० १८०॥