________________
__ जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता
२७५
(३) कपूर हुवै अति ऊजलो रे । (४) सगुण सनेही मेरे लाल । इसी प्रकार जिनहर्प द्वारा प्रयुक्त कुछ प्रसिद्ध देशियां इस प्रकार हैं-१ (१) मोरा प्रीतम ते किम कायर होइ । (२) नींदडली वइरण हुई रही। (३) उधव माधव ने कहिज्यो । (४) मन मधुकर मोही रह्यो । (५) मोहन मुंदड़ी ले गयो। (६) आप सुवारथ जग सहू ।
ऐसी अनेक आद्य पंक्तियां इन धर्म प्रचारक कवियों की कृपा से सुरक्षित रह मकी है ।२ इन कवियों की यह संगीत-पद्धति प्रत्येक राग-प्रेमी को रस मग्न करने में समर्थ है । जनमन को आकर्षित और अभिभूत करने की जितनी सामर्थ्य संगीतशास्त्र में है, उतनी अन्य किसी शास्त्र में नहीं। इन कवियों की कविता में छन्दों का निर्माण संगीत-शास्त्र की नैसर्गिकता प्रगट करता है। ताल, लय, गण, गति और यति आदि संगीत के ही प्रमुख अंग हैं, जिन्हें छन्दज्ञों ने स्वीकार कर लिया है। अलंकार-विधान :
काव्य की गोमा में अभिवृद्धि करने वाले तत्त्वों को अलंकार कहा गया है । ये अलंकार जहां एक ओर कथ्य की अभिव्यक्ति को सुन्दरता प्रदान करते हैं वहां दूसरी ओर कवि की कल्पना के परिचायक भी होते हैं । कवि जिस रूप में विषय को अनुभूत करता है उसी रूप में प्रकट न करके उसे कल्पना के सहारे अधिक प्रभावशाली अस्तित्व प्रदान करता है। इसीलिए अलंकरण की प्रवृत्ति इसकी विशेषता है । यह अलंकरण दो रूपों में होता है-(१) शब्दालंकार, तथा (२) अर्थालंकार के रूपों में। . (१) शब्दालंकार : इसके अन्तर्गत शब्दों का संयोजन आदि इस प्रकार किया जाता है कि कविता में एक प्रकार का चमत्कार उत्पन्न हुए विना नहीं रहता। यह चमत्कार ही भाव को वैशिष्ट्य प्रदान करता है। शब्दालंकार में सर्वप्रमुख अलंकार हैं अनुप्रास । आलोच्य युगीन जैन-गूर्जर कवियों ने अनुप्रास के बड़े सुन्दर प्रयोग किए हैं। कवि किशनदास का एक उदाहरण देखिए
-
१. जिनहर्ष थावली, संपा० अगरचन्द नाहटा । २. जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड २, प्राचीन देशियों की सूची।