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________________ जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता २७३ कवि माने गये हैं। महाकवि सूरदास के पदों को देखकर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इनका सम्बन्ध किसी प्राचीन परम्परा से होने का अनुमान किया है ।१ डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने उनका उद्गम वौद्ध सिद्धों के गानों को माना है ।२ पदों का मूलरूप कुछ भी हो किन्तु भक्ति और अध्यात्म के क्षेत्र में प्रायः अधिकांश जैन-गूर्जर कवियों ने पदों का खुलकर प्रयोग किया है । इन कवियों का यह पद साहित्य विभिन्न छन्दों से युक्त और राग-रागनियों में निवद्ध है । जैन कवियों ने संभवतः पद रचना बहुत पहले से आरम्म कर दी थी। यही कारण है कि इनके पदों में भावाभिव्यक्ति के साथ-साथ संगीतात्मकता भी विविध रागनियों के साथ उतरी है। संगीत विधान : प्रायः सभी जैन-गूर्जर कवियों ने जनता को आकृष्ट करने के लिए गेय पद्धति अपनाई है। कुछ जनवादी कवियों ने दो विभिन्न मात्रा या ताल वृत्तों की कुछ पंक्तियां मिलाकर उन्हें गेय बनाने के लिए उनमें विविध रागों का सम्मिश्रण कर नये छन्दों की भी सृष्टि की है। ये देशी छन्द संगीत के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ऐसे कवियों में मालदेव, समयसुन्दर, जिनहर्प, धर्मवर्द्धन, ऋषभदास, श्रीमद् देवचन्द्र आदि प्रमुख हैं। इन्होंने प्रसिद्ध देशियों, ख्यालों; तों आदि को अपनी रचनाओं में प्रमुख स्थान दिया । संगीत में प्रमुख ६ राग और छत्तीस रागनियां मानी गई हैं। इन्हीं के भेदानुभेद, मिश्रमाव और प्रान्तीय भेदों आदि से सैकड़ों नई रागनियों का निर्माण हुआ है। इन कवियों ने संगीत की प्रभावशालिता को पहचान कर ही इसका आश्रय ग्रहण किया और मुक्त रूप से गेय गीतों, पदों और काव्यों का निर्माण किया । महात्मा आनन्दघन तो राग-रागनियों के पंडित ही थे। इनके प्रमुख रूप हैं-बिलावल, दीपक, टोड़ी, सारंग, जयजयवन्ती, केदारा, आसावरी, वसंत, नट, सोरठ, मालकोस, मारू आदि। ये सब त्रिताल, एकताल, चौताल, और धमार आदि तालों में निवद्ध है । इन कवियों के पदों को निर्देशित तालों एवं रागों में गाया जाय तो इनका प्रभाव द्विगुणित हो उठता है। यह संगीत योजना ऊपर से आरोपित नहीं, शब्द योजना में ही स्वत: गुम्फित है । इस दृष्टि से आनन्दधन का पद प्रस्तुत है१. "अतः सूरसागर किसी चली आती हुई गीतकाव्य परम्परा का~चाहे वह मौखिक ही रही हो-पूर्ण विकास सा प्रतीत होता है।" हिन्दी साहित्य का इतिहास, पं० रामचन्द्र शुक्ल (वि० सं० १९६७), पृ० २०० । २. हिन्दी साहित्य का आदिकाल, डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ० १०८ । -
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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