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________________ ૭૨ मालोचनावंड की हैं। श्री यशोविजय जी रचित "दक्पट बौरासी बोल" से एक मोठा उद्धृत है-- "दाइ घड़ी के फेर, केवल मान मरत कौं, बड़ो मोह को घेर, भाव प्रभाव गर्ने नहीं ।।"१ । ज्ञानानन्द का एक सोरठा इस प्रकार है "प्यारे चित्त विचार ले, तु कहां से आया । . बेटा बेटी कवन है, किसकी यह माया ॥१॥"२ हरिगीतिका : लयात्मक छन्दों में इस छन्द. का विशेष महत्व है। इसमें सोलह बीर बारह मात्राओं पर विराम होता है । ५वी, १२वीं, १९वीं, और २६वीं मात्राएं लघु होती हैं। अन्तिम दो मात्राओं में उपान्त्य लघु और अन्त्य दीर्घ होता है। श्री यशोविजय जी की 'दिक्पट चौरासी बोल' कृति से एक हरिगीतिका इस प्रकार है "प्यारह निर्खये एक द्रव्ये, कहे श्री जिन आग में, जिनाम घटत संठाण थापन, द्रव्य मृद गुन भाव में । यो जीव द्रव्यह केवलादिक, गुनह द्रव्यत. भावतें, होइ नियम पुद्गल द्रव्य को, तो तन नहीं व्यभिचारते॥"३ . पद: इस युग के जैन-गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता में पदों का स्थान महत्वपूर्ण है। भक्ति और अध्यात्म के क्षेत्र में पदों का प्रयोग- प्रचुप परिमाण में हुआ है। इन पदों द्वारा ही इन. कवियों ने देश में आध्यात्मिक एवं साहित्यिक चेतना को जागृत करने का अपूर्व प्रयत्न किया। प्रस्तुत प्रवन्ध में ऐसे अनेक पद रचयिताओं का उल्लेख हुआ है । भट्टारक रत्नकोति, आनन्दधन. कनककीति, कुमुदचन्द, चन्द्रकीति, शुभचन्द, जिनहर्प, जिनराजमूरि, श्रीमद् देवचन्द, वर्मवर्द्धन, मट्टान्क सकलभूषण, यशोविजयजी. विनयविजयजी, ज्ञानानन्द, वादीचन्द, विद्यासागर, समयसुन्दर, संयममागर, हेमविजय, जान विमलमूरि आदि का पद-साहित्य उत्तम कोटि - - - हिन्दी के भक्ति काव्य में पदों का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है। में • पदों के प्रधान रचयिताओं में कबीर, मीरा, मूरदास, तुलसी आदि उत्तम कोटि के १. गूर्जर माहित्य संग्रह, प्रथम भाग, पृ० ५७६ २. भजनसंग्रह-वर्मामृत, पं० वरदास, पृ०८ ३. गृजर माहित्य संग्रह. प्रथम नाग. पृ० ५४६ -
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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