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________________ जैच गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता २७१ वर्द्धन की 'छप्पय बावनी'. इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है। कवि ने अन्य मुक्तक रचनाओं में भी इस छन्द का प्रयोग किया है। इनका एक छप्पय इस प्रकार है-~ "जव ऊगे जग चक्ख तिमिर जिण वेला वास । प्रगट हर्स जब पद्म, इला जव' होइ उजासै ।। चिड़ीयां जब चहचहैं, वहै मारग जिण वेला । । धरम सील सहु धरै, मिलै जब चकवी मेला ॥ घुम धुमै माट गोरस-घणा, पूरण वांछित पाईये । जिनदत्तसूरि जिनकुशल रा, गुण उण वेला गाईये ॥१॥"? जिनहर्ष ने भी अनेक छप्पय लिखे हैं । एक उदाहरण प्रस्तुत है "लंक सरीखी पुरी विकट गढ़ जास दुरंगम । पारवली खाई समुद्र जिहां पहुंचे नही विहंगम । विद्याधर वलवन्त खंड त्रण केरो स्वामी । सेव करे जसु देव नवग्रह पाये नामी । दस कंध वीसं भुजा लहे, पार पारवे सेना वह । जिनहर्ष राम रावण हण्यो, दिन पलट्यो पलट्या सहु ॥१॥"२ यशोविजय जी ने भी अपनी कृति 'दिक्पट चौरासी बोल' में एक दो स्थानों पर छप्पय छन्दों का प्रयोग किया है। .. .. कुण्डलिया : धर्मवर्द्धन की 'कुण्डलिया वावनी' इस छन्द की दृष्टि से महत्व पूर्ण रचना है। इसमें कवि ने ५७ कुण्डलियां लिखीं हैं । एक कुण्डली देखिए "डाकै पर घर डारि डर, कूकरम करै कठोर । मन में नांहि दया मया, चाहैं पर धन चोर चाह पर धन चोर, जोर ‘कुत्रिमन ए जाणो । " मुमक बंधि मारिज, घणी वेदन करि धांणो । __ फल बीजां सम फले, अव लागे नाहीं आके । धरम किहां धरमसीह, डारि डर पर घर डाकै ॥३४॥" सोरठा : लगभग सभी कवियों ने सोरठा छन्द का अधिकाधिक प्रयोग किया है। चौपाई के साथ, दोहों के स्थान पर तथा पृथक् रूप से भी सोरठा छन्द में · कविताएं १. धर्मवर्द्धन ग्रंथावली, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ० १०५ २. जिनहर्प ग्रंथावली, संपा। अगरचन्द नाहटा, पृ० ५१६ ३. धर्मवई न ग्रंथावली, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ० २७ . ... ..
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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