________________
२७०
-
मालोचना-खंड
कवि धर्मवर्द्धन ने भी कवित्त छन्द का सफल प्रयोग किया है । इन्होंने अमरसिंह, जसवन्तसिंह, दुर्गादास आदि के यशोगान में सुन्दर कवित्तों की रचना की है ।१ जिनचन्द्रसूरि की गुरु भक्ति संबंधी कवित्त भी 'इन्होंने लिखे है ।२. जिनहर्ष ने अपनी कुछ लघु रचनाओं के साथ फुटकर कवित्त भी रचे हैं। सवैया : . .
जैन-गूर्जर कवियों ने 'सवैया' के विविव प्रकारों का सफल प्रयोग किया है । ब्रजभाषा का यह छन्द इन कवियों ने कवित्त की अपेक्षा अधिक पसंद किया है। कवि लक्ष्मी वल्लभ ने अपनी कृति 'नेमिरराजुल बारहमासा' में ध्वनि विश्लेषण के नियमानुसार लय-तरंग का समावेश कितने अद्भुत ढंग से इस छन्द में किया है
"उमटी विकट घरघोर घटा चिहुं ओरनि मोरनि सोर मचायो । चमके दिवि दामिनि यामिनि कुमय भामिनि कुपिय को संग भायो । लिव चातक पीउ ही पीड लई, भह राज हरी भुइ देह छिपायो । पतियां पै न पाई री प्रीतम की अली, श्रावण आयो पै नेम न आयो ॥"३
जिनहर्ष, धर्मवद्धन, समयसुन्दर, यशोविजय आदि कवियों ने इस छन्द का मर्वाधिक प्रयोग किया है । कवि जिनहर्ष की 'जसराज बावनी' से एक और उदाहरण देखिए
"नग चिन्तामणि डारि के पत्थर जोउ, ग्रहें नर मूरख सोई । सुन्दर पाट पटवर अंबर छोरि के ओढण लेत है लोई ॥ कामदूधा धरतें जू विडार के छेरि गहें मतिमन्द जि कोई । वर्मा कू छोर अधर्म क जसराज उणे निज बुद्धि विगोई ॥१॥"४
धर्मबर्द्धन ने 'सवैया' के विभिन्न प्रकारों में 'सवैया इकतीसा' और 'मया नेवीमा' में अच्छी रचनाएं की है। छप्पय :
अपभ्रंश मैं छप्पय का प्रयोग प्रायः वीररमात्मक काव्य में हुआ है। इन कवियों ने इसका भक्ति और अध्यात्म के क्षेत्र में भी प्रयोग किया है। कवि धर्म१. धर्मवद्धन ग्रंथावली, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ० १४५-४८ २. धर्मवद्धन ग्रंथावली, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ० २४५ ३. इस प्रबंध का तीसरा शव्याय ४. जिनहर्ष ग्रंथावली, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ०८१
-
-