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जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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सरसति सुनमति णये अणुसरि, गौर हरूआ गोयम मनि धरि । बोलु एक हु सरस आख्यान, सुण जे सज्जन सहु. सावधान ॥"? जिनहर्ष की "ऋषिदत्ता चौपाई" की इस प्रकार है - "उत्तम नमतां लहीये पार, गुण ग्रहतां लहीए निस्तार ! जाइने दूर कर्मनी कोड़, कहै जिनहर्ष नमू कर जोर ॥३२॥" धर्मवर्द्धन की 'वैधक विघा' एक चीपाई देखिए'हिरदै रोग स्वास अरू खास, डम क्रिया तिहां पंच प्रकास।
"हुदै लीक अरू वर्तुल च्यार, दंभ अस्थि के मध्य विचार ॥१५॥" ऋवित्त :
यह ब्रजभाषा का प्रिय छन्द रहा है । चारण बन्दीजनों की रचनाएं प्रायः इमी छन्द में हुई हैं। इस युग के जैन-गूर्जर कवियों ने इस छन्द का प्रयोग आव्यात्मिक एवं भक्ति के क्षेत्र में बड़ी सफलतापूर्वक किया है। किशनदास कृत 'उपदेश बावनी' मनहरण कवित्तों में की गई उत्तम रचना है। इसमे १६ बर्गों के पश्चात् यति और अन्त में एक गुरु है । एक उदाहरण द्रष्टव्य है
"जीवन जरा-सा दुःख जनम जरासा तामें, डर है खरा-सा काल शिर पे खरा-सा है। कोड विरला-सा जो पै जीवं वै पचासा अन्त, बन वीच वासा यह वात का खुलासा है । संध्या का-सा वान काखिर का-सा कान चल, दल का-सा पान चपला का-सा उजासा है। .. ऐसा सा रहासा तामें किसन अनन्त आसा,
पानी में बतासा तैसा तनका तमासा है ॥३०॥"२. . इस छन्द में लय और ताल का मुन्दर समावेश है । अर्थ साम्य के साथ मधुर ध्वनियों की योजना प्रायः इस बन्द में प्राप्त होती है । कवि जिनहर्ष का एक कविन इस प्रकार है
"मेह कइ कारण मोर लवइ फुनि मोर की वेदन मेहन जाणइ । दीपक देखि पतंग जरइ अंगि सो बहू दुख चित्त भइ नांणइ । मीन मरई जल कंइज विछोहत मोह घरइ तनु प्रेम पिछाणइ ।
पीर दुखी की मुखी कहां जाणत, सयण सुणइ 'जसराज' वरवाणइ ।।" १. जैन गुर्जर कविओ, भाग ३, पृ० ८०३, मंगलाचरण २. गुजरात के हिन्दी गौरव ग्रंथ, डॉ० अंबाशंकर नागर, उपदेशवावनी, पृ० १६६ ३. जिनहर्प प्रथावली, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ० ४०१
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