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________________ २६८ आलोचना-खंड दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । अनेक कृतियां ऐसी भी हैं, जिनके बीच बीच में दोहों का प्रर्याप्त प्रयोग हुआ है। उदयराज की 'वेध विरहिणी प्रबन्ध' कृति से एक दोहा देखिए "को विरहिन जिय सोच में, घर अपनी जिय आस । रिगत पान क्यों कर दन, गयो वैद पं पास ॥१॥" द्रव्य प्रकाश का प्रारम्भिक दोहा देखिए "अज अनादि अक्षय गुणी, नित्य चेतनावान् । प्रणामुपरमानन्दमय, शिव सांप भगवान् ॥ १॥" चौपाई : अपभ्रंश की कड़वकवाली शैली जो महाकाव्यों में प्रयुक्त होती थी हिन्दी को दोहा-चौपाई शैली का मूल उद्गम है ।१ हिन्दी के महाकाव्य 'पद्मावत', 'रामचरित मानस' आदि इसी शैली में लिखे गये । जैन गूर्जर कवियों में विनयचन्द्र की 'उत्तम कुमार चरित्र चौपाई कुशल लाभ का 'माधवानल चौपाई, वादिचन्द्र का 'श्रीपाल आख्यान', समयसुन्दर की 'सीताराम चौपाई' आनन्दवर्द्ध नसूरि की 'पवनाभ्यास चौपाई आदि प्रवत्व काव्यों में चौपाई-दोहों का ही निदर्शन है। डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी के कथानानुसार चौपाई का जन्म कथानक को जोड़ने के लिए ही हुआ था ।२ किन्तु जैन गूर्जर कवियों ने मुक्तक काव्यों के लिए भी चौपाई छन्द को पसन्द किया है । जिनहर्ष की 'ऋपिदत्ता चौपई', तथा 'सिद्धत्रक म्तवन', लक्ष्मीवल्लभ की 'उपदेश बत्तीसी', धर्मवर्द्धन की वैधक विद्या' आदि कृतियों में अधिकांश चौपाइयों का ही प्रयोग हुआ है । चौपाइयों के साथ अधिकांना कृतियों में प्रारम्भ, मध्य अथवा अन्त में कहीं कहीं दोहे भी हैं। । प्रायः प्रवन्ध काव्यों में एक चर्चापाई के उपरान्त एक दोहे का क्रम है, किन्तु मुक्तक रचनाओं में कमी एक दोहा और फिर अनेक चौपाइयों और कभी अनेक चौपाइयों और फिर अनेक दोहों का क्रम चला है। कवि वादिचन्द के श्रीपाल आल्यान में दोहे-चौपाई का प्रयोग अवलोकनीय है "आदि देव प्रथमि नमि. अन्त श्री महावीर । वाग्वादिनी वदने नमि, गरुड गुण गम्भीर ॥ १. डॉ० रामसिंह तोमर का लेख, जैन साहित्य की हिन्दी साहित्य को देन, प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ, पृ० ४६८ २ हिन्दी साहित्य का आदिकाल, डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ० १४
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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