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जन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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कुमुदचन्द्र आदि कवि इस दृष्टि से विशेष प्रसिद्ध हैं । यथोविजयजी के इस पद में भाषा की मधुरिमा, सरलता और सरसता है, वह दर्शनीय है । प्रभुदर्शन के लिए आतुर, विह वलवनी, प्रतीक्षारत आत्मानुभूति की इस अभिव्यक्ति में प्रसादगुण और प्रांजलता देखते ही बनती है"कव घर चेतन आवेगे मेरे, कव घर चेतन आवेंगे ।।
सखिरि लेवू बलया वार वार ।। रेन दीना मानु ध्यान तुसाढ़ा, कबहु के वरस देखावेंगे । विरह दीवानी फिर ढुढती, पीउ पिउ करके पोकारेंगे । पिउ. जाय भले ममतासे, काल अनन्त गमागे ॥ करूं एक उपाय में उद्यम, अनुभव मित्र बोलावेंगे । आय उपाय करके अनुभव, नाथ मेरा समक्षावेंगे ॥ अनुभव मित्र कहे सुन साहेब, अरज एक अव धारेंगे । ममता त्याग समता पर अपनी, वेगे जाय अपनावेंगे।। . : अनुभव चेतन मित्र दोउ, सुमति निशान धुरावेगे ।
विलसत मुग्व जस लीला में, अनुभव प्रीति जगावेंगे ॥"?
कवि लक्ष्मी वल्लम के पदों की तथा "नेमि-राजुल बारहमासे" की। प्रत्येक पंक्ति में प्रसाद गुण का वैभव है । राजुल आतुर मन से नेमिनाथ की प्रतीक्षा करती रही, सावन आया पर 'नेम' न आये। राजुल की विरह दशा का मार्मिक चित्र कवि ने बड़ी ही प्रासादिक शैली में प्रस्तुत किया हैं
"उमटी विकट घनघोर घटा चिहुँ ओरनि मोरनि सोर मचायो । चमके दिवि दामिनि यामिनि कुभय मामिनि कुपिय को संग भायो । लिय चातक पीउ ही पीड लई, भई राज हरी मुइ देह छिपायो ।
पतियां पं न पाई री प्रीतम की अली, श्रावण आयो पै नेम न आयो ।।"२ . . इस युग के अधिकांश कवियों की भाषा में रागात्मिका शक्ति की प्रवलता है। — इन: कवियों ने · भाषा को सजाने, संवारने में अपनी पटुता प्रदर्शित की है। इसमें भावप्रवणता के साथ मनोरंजकता भी है। भावों को अधिक तीव्र बनाने के लिए इन कवियों ने नाटकीय भाषाशैली का प्रयोग. भी किया है । आत्मानुभूति की अभिव्यंजना इस शैली में दृष्टव्य है-- . .
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१. मगन संग्रह धर्मामृत, पं० वेचरदास, पृ० ६५ २. अभय जैन पुस्तकालय, बीकानेर की प्रति .