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________________ २६४ बालोचना-पंट कवि कुमुदचंद ने बताया है संसार में व्यर्थ भटकने से कुछ हाथ नहीं लगता'निकसत धीउ न नीर विलोवत ।' तन, धन, योवन आदि तो नदी नाव संयोग हैं'योग मिल्यो जेस्यो नदी नाउ रे ॥१ कवि विनयचन्द्र ने भी लोकोक्तियों का प्रयोग कर अपनी रचनानों को हृदयग्राही बना दिया है। विनयचन्द्र की कविता में कुछ, उद्धारण प्रस्तुत हैं"साकर मां कांकर निकसइ ते साकर नौ नहि दोष" -विमलनाय स्तवन "एक हाथइ रे ताली नवि पडइ रे" ___ --स्वाभाविक पार्श्वनाथ स्तवन "पंखी जातइ एकज हुआ, पिण काग कोइल ते जूबा रे" -सूरप्रम स्तवन जयवन्तसूरि ने भी सरल राजस्थानी भाषा के मुहावरों का प्रयोग किया है"दाधां उपरि लूण, लगावी आपीया रे।" -नेमि राजुल वार मास वेल प्रबंध (१) "निसि वितई तारा गनत, रो रो मव दिन याम ।" (२) "वह देखई जीउ कर मलति, इस देखत संतोष ।" -स्थूलिभद्र मोहन वेलि इस प्रकार वाक्य योजना और पद-संघठन की दृष्टि से भी इस युग की काव्यभापा महत्वपूर्ण है। असंख्य कहावतों और मुहावरों के स्वाभाविक प्रयोग द्वारा भाषा को शक्तिशाली बनाया गया है। कवि धर्मवद्धन के अधिकांश पद 'कहावत' के साथ ही समाप्त होते हैं। एक पद प्रस्तुत है "नट बाजी री नट बाजी, संसार सब ही नट बाजी । अपने स्वार्थ कितने उजरत, रस लुब्यो देखन राजी ॥१॥ छिकरी ककरी के करत, रूपये, वह कूदत काठ को बाजी। पंख ते तुरत ही करत परेवा, सवही कहत हाजी हाजी ॥२॥ ज्ञानी कहै क्या देखे गमारा, सब ही मगल विद्या माजी । मगन मयो धर्मसीख न मानत, जो मन राजी तो क्या करे काजी ॥३॥ · प्रसादगुण सम्पन्ना : प्रसादगुण सम्पन्नता तो अधिकांश कवियों में देखी जा सकती है । कवि समयसुन्दर, महात्मा आनन्दघन, यशोविजयजी, जिनहर्ष, रत्नकीति, शुभचंन्द्र, २. १. हिन्दी पद संग्रह. संपा० डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल, पृ० २०
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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