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________________ जन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता २६३ नयन निठोर" तथा 'उमंगी चले मति फोर ॥१॥' में "नयन निठोर" और "मति फोर" और कुमुदचन्द्र के "दुख चूरन तुही गरीव निवाज रे ॥ " में 'गरीब निवाज' आदि ऐसे ही प्रयोग हैं । एक ऐसा ही प्रयोग विनय की कविता से और द्रष्टव्य है__ • "मेरी मेरी करत बाउरे, फिरे जीउ अकुलाय । पलक एक में बहुरि न देखे, जल-बुन्द की न्याय ॥" यहाँ 'वाउरे' शब्द ऐसे उपयुक्त स्थान पर बैठा है, जिससे पद में जीवन आ गया है । इस प्रकार उपयुक्त स्थान पर शब्दों को बिठाना सच्चे कलाकारों का ही काम है। कहावतें और मुहावरे : कहावतों और मुहावरों को भी इन कवियों ने अपनी अपनी कविता में नगीनों की भाँति जड़ दिया है। इनके स्वाभाविक प्रयोग से इनकी कविता में जान आ गई है। ऐसे प्रयोग किसनदास की उपदेशवावनी में बड़ी सफलता से हुए है। कवि ने गांठ का खाना, नदी-नाव का संयोग, कंधा नवाया आदि छोटे मुहावरों को अपनी कविता में 'फिट' कर दिया है। कहावतों के प्रयोग में कवि की सिद्धहस्तता दर्शनीय है-१. "लेवे को न एक कपु, देवे को न दोई है ॥ १३ ॥ ज्यों ज्यों भीजे कामली, त्यों त्यों भारी होत ।। १५ ।। है है मन चंग तो कठौती में गंग है ।। २६ ।। दूध के जरे की नाइ छाछ फूकि पीजिए ।। बांध मूठी आयो पै पसारे हाथ जायवो ॥" कवि समयसुन्दर की कविता भी लोकोक्तियों के प्रयोग की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। उनकी 'सीतराम चौपाई' में प्रयुक्त कुछ कहावतें दृष्टव्य हैं--- " छट्टी रात लिख्यउ ते न मिटइ। (प्रथम खण्ड, छन्द ११) करम तणी गति कह्यि न जाय । (दूसरा खण्ड, छन्द २४ ) लिख्या मिटइं नहिं लेख । (खण्ड ५, ढाल ३) थूकि गिलइ नहि कोइ (खण्ड ६, ढाल ३ )" ज्ञानानन्द ने अपने एक पद में दंभ-अभिमान और संसार सुख में आमग्न मानव को सावधान करते हुए कहा है "चार दिनांकी चाँदनी हेगी, पाछे अंधार वतावे ॥४॥"२ १. गुजरात के हिन्दी गौरव ग्रंथ-उपदेश बावनी .२. भजन संग्रह, धर्मामृत, पं वेचरदास, पृ० २६
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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