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जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता (ज) गुजरातीओ ए हिन्दी साहित्यमा आपेलो फालो :
बाह्याभाई पी० देरासरी (स) भुज ( कच्छ ) की ब्रजभाषा पाठशाला : कुवर चन्द्रप्रकाश सिंह (e) राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व :
डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल (३) संग्रह-संकलन ग्रन्थ :
समय सुन्दर कृत कुसुमांजलि, जिनहर्प ग्रन्यावलि, जिनराजसूरि कृत कुसुमांजलि, धर्मवर्द्धन ग्रन्थावलि, विनयचन्द्र कृत कुसुमांजलि, ऐतिहासिक जन-काव्य संग्रह, जैन गुर्जर काव्य संग्रह, आनन्दधन पद रत्नावली, आनन्दधन पद संग्रह, गन संग्रह धर्मामृत, आनन्द काव्य महोदधि आदि हिन्दी तथा गुजराती विद्वानों द्वारा सम्पादित संकलन ग्रन्य। (४) पत्र-पत्रिकाओं में फुटकर निवन्ध :
___ शिक्षण और साहित्य, अनेकांत, जिनवाणी, परम्परा, राजस्थानी, हिन्दी अनुशीलन, वीरवाणी, सम्मेलन पत्रिका, साहित्य सन्देश, ज्ञानोदय, नागरी प्रचारणी पत्रिका, मरुवाणी, राजस्थान भारती, जैन सिद्धांत भास्कर आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित विभिन्न विद्वानों के फुटकर निवन्ध तथा प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ, श्री राजेन्द्रसूरि स्मारक नन्थ, मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, आचार्य विजयवल्लभ सूरि स्मारक ग्रन्थ आदि में प्रकाशित कुछ निबंध । . उपर्युक्त सामग्री में केवल तीन शोध प्रबंध ही ऐसे है, जिनमें कुछ गुर्जर कवियों तथा उनकी कृतियों का परिचय उपलब्ध होता है। डॉ० नागर के , अधिनिबंध-"गुजरात की हिन्दी सेवा" का प्रतिपाद्य गुजरात के अंचल में आती समस्त हिन्दी साहित्य सम्पदा की गवेपणा था । अतः उन्होंने वैष्णव, स्वामीनारायण 'संत, राज्याश्रित, सूफी तथा आधुनिक कवियों का परिचय प्रस्तुत करते हुए गुजरात
के आनन्दघन, यशोविजय, विनय विजय, ज्ञानानन्द, किसनदास आदि कुछ प्रमुख ___ कवियों का परिचय देने तक ही अपने को सीमित रखा है। डॉ० व्यास का कार्य
प्रारम्भिक गवेषणा का ही है। इनका प्रवन्ध यद्यपि डॉक्टर नागर के कार्य के पश्चात् प्रस्तुत किया गया था तथापि ये डॉ० नागर से विशेष जैन कवियों को प्रकाश में नहीं ला सके हैं। डॉ० चोक्सी के प्रवन्ध का मुख्य प्रतिपाद्य गुजरात और गुजरात भापा के कवियों को प्रकाश में लाने का रहा है अतः गुजरात के हिन्दी-सेवी जैन फवियों पर उनकी विशेष दृष्टि नहीं रही है।
. हिन्दी-जन साहित्य के इतिहास में भी जैन-गुर्जरं कवियों का न्यूनाधिक