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भूमिका खण्ड :
सम्प्रदायगत साहित्य सदैव उपेक्षणीय अथवा तिरस्करणीय नहीं होता, अनेक कृतियाँ. तो शुद्ध साहित्यिक मानदण्डों पर भी खरी उतरती हैं । अतः सम्प्रदायगत साहित्य का मूल्यांकन भी साहित्यिक समृद्धि के लिए अनिवार्य माना जायगा।
इस प्रकार के क्षेत्रीय शोधों से हिन्दी के राष्ट्रीय स्वल्प का विकास स्वतः होता चलेगा और यह एक प्रकार से व प्रकारान्तर से हिन्दी भाषा व साहित्य की. एक अतिरिक्त किन्तु महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी।
___ उक्त दृष्टियों से विचार करने पर विपय का महत्व स्वयंमेव प्रतिपादित हो। जाता है। -
२. विषय से सम्बद्ध प्राप्त सामग्री का विहंगावलोकन -
" . एवं सामग्री प्राप्ति के स्रोत - सामग्री-विहंगावलोकन : . जैन-गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता पर शोधकार्य करने के लिए मुझे जो । आधारभूत सामग्री प्राप्त हुई है, वह इस प्रकार है(१) शोध प्रवन्ध : (क) गुजरात की हिन्दी सेवा ( १६५७, राजस्थान युनिवर्सिटी )
डॉ. अम्बाशंकर नागर - (ख) गुजरात के कवियों की हिन्दी-काव्य-साहित्य को देन ( १६६२, आगरा युनिवर्सिटी)
डॉ० नटवरलाल व्यास (ग) सतरमां शतकना पूर्वार्ध ना जैन-गुजराती कविओ ('१६६३, गुजरात युनिवर्सिटी)
डॉ० वि० जे०. चोक्सी (२) हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास तथा अन्य ग्रन्थ :
(क) हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास : पं० नाथूराम प्रेमी (ख) हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास : कामताप्रसाद जैन (ग) जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास : मो० द० देसाई (घ) हिन्दी जैन साहित्य परिशीलग भाग १, २, नेमिचन्द्र शास्त्री (च) जैन गुर्जर कविओ भाग १, २, ३ : मो० ८० देसाई (छ) गुजरात के हिन्दी गौरव ग्रंथ : डॉ० अम्बाशंकर नागर