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________________ जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता २४६ प्रकृति का अलंकारगत प्रयोग : जैसाकि हम पहले कह आए हैं कि अलंकारों का कार्य भाव को सुन्दरतम रूप में प्रस्तुत करना है तथा अभिव्यक्ति को मुकुमार शब्दावलि प्रदान करना है, प्रकृति का अलंकार रूप में प्रयोग भी इसी कार्य को सम्पन्न करता है । प्रकृति के अलंकारगत प्रयोग के कुछ उदाहरण देखिए "१- मैं तो पिय तें ऐसि मिली आली कुसुम-वास संग जैसे ।१ -आनंदघन २- कुमुदिनी चंद जिसउ तुम लीनउ, दूर तुहि तुम्ह नेरउ ॥२ -समयसुन्दर ३. चन्द चकोर जलदजु सारंग, मीन सलिल जुध्यावत । कहत कुमुद पतित पावन तूहि हिरदे मोहि भावत ॥३ -मट्टारक कुमुदचन्द्र ४- सारंग देखि सिधारे सारगु, सारंग नयनि निहार ।४ -मट्टारक - रत्नकीर्ति ५- सुप्रभाति मुख कमल जु दीठु, वचन अमृत थकी अधिक जु मीठु ॥५ -आचार्य चन्द्र कीर्ति ६- जैसे घनघोर जोर आप मिलै चिहुं और, पवन को फोर घटत न लागै वार जू । सिरता को वेग जैसे नीर तै बढ़े है तैसें, छिन में उतरि जाइ सुगम अपार जू । तैसै माय मिल आय उद्यम कीर्ण विनाय, सकृत घट है तव जैसे कहूं लार जू । _ ऐसो है तमासो जिनहरख घन, घन दोउ मिल आइ जोईयो विचार जू ॥"६ -जिनहर्ष उपदेश आदि देने के लिए प्रकृति का काव्यात्मक प्रयोग : अनेक स्थलों पर कवि प्रकृति के माध्यम से अन्य लोगों को उपदेश देना चाहता है । काव्य में जहाँ कहीं इस प्रकार का वर्णन प्राप्त होता है वहाँ प्रकृति १. गुजरात के हिन्दी गौरव ग्रंथ, पृ० १४६ २. समयसुन्दर कृत कुसुमांजलि, ३८३ ३. राजस्थान के जैन संत - व्यक्तित्व और कृतित्व, पृ० २७२ ४. वही, २७० ५. वही, १६० ६. जिनहर्ष गंथावली, पृ० ११३ -
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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