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जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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ही प्रमुख है। इस दृष्टि से इन्हें हम नीति के कवि भी कह सकते हैं । इन कवियों ने जीवन और जगत् को अपनी विभिन्न परिस्थितियों में तथा उसकी सफलताओं - असफलताओं एवं उपलब्धियों - अभावों को अत्यधिक निकट के देखा था। यही कारण है कि इनकी बातों में जीवन सत्य है । इनकी वाणी में या तो स्वानुभूति की झलक है या परम्परानुभूति का प्रभाव ।
प्रत्येक जाति, धर्म या सम्प्रदाय के कवियों द्वारा प्रणीत इस प्रकार का नीतिकाव्य भारतीय जन-जीवन की आचार संहिता रहा है । काव्य की अन्य धागओं की तुलना में यह काव्य कम ललित या यत्किंचित् रसहीन हो सकता है फिर भी यहाँ कुछ नीति और सद्धर्म का सरल उपदेश देने वालों में समयमुन्दर, धर्मवईन, जिनहर्ष, लक्ष्मीवल्लभ, केगवदास, किनगदास, विनयचंद्र खेमचन्द, दयासागर, गुणसागरसूरि, उदयराज, कुमुदचन्द्र, जिन राजसरि, मालदेव, विनयासमुद्र आदि अग्रगण्य है । वैसे प्रायः सभी कवियों ने नैतिक आचार-विचार को प्रमुखता दी है। कवि समयमुन्दर ने अपने असंख्य गीतों एवं विशेषतः छत्तीमियों में, नीतिपरक काव्य के जितने भी विषय बन सकते हैं, प्राय: उन सभी विषयों पर सरल उपदेशात्मक एवं अनुभूति परक नैतिक विचारों की अभिव्यक्ति की है । "प्रस्ताव सर्वया छत्तीमी" से एक उदाहरण दृष्टव्य है--- .
"व्याव्या बिना वेत्र किम लुणियइ, खाद्या पावइ भूम्ब न जाइ । आप मुयां विण सरग न जइयड, वाते पापड़ किम ही न थाइ ।। साधु : साधवी श्रावक श्रविका, एनउ बेत्र मुपात्र कहाइ । समयसुन्दर कहइ तउ सुख लहियइ, जल घर सारउ दत्त दिवाइ ।।"?
जिनहपं भी नीति के कवि हैं । जीवन के विशाल अनुभवों का मार कवि ने अपने नीतिपरक दोहों तथा विगाल बावनी साहित्य में उड़ेल दिया है । एक उदाहरण दृष्टव्य है--
"घरटी के दो पड़ बिन कण चरण ज्यु होय ।
त्युदो नारी विच पदयौ गो नर गरे नहीं कोय ॥"२
कवि धर्मवर्द्धन ने भी नीति काय के समस्त विषयों को पना लिया है। नारी को लेकर उनके विचार व्यहै--
"नैन नकाह गुन दिमावत, बैन की काह मो यान बनावै ।
पनि पी नित में परवाह नहीं, मित गीजन और गुनह जणावे ।। १. गमगगुन्दर गत गुसुगाजलि, पृ० १६ २. जिनसं गायनी, छोरा बावनी, १०९६