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________________ २४४ आलोचना-खंड ‘इन कवियों की कविता में रहस्यवाद की दोनों स्थितियां-साधनात्मक एवं प्रेममूलक आयी हैं । आनंदघन, यशोविजय, विनय विलास, ज्ञानानंद आदि ऐसे साधक के रूप में आते हैं जो अनुभूति और स्व-संवेदन ज्ञान को ही महत्व देते हैं। आनंदघन प्रिय-मिलन से ही अपना "सुहाग" पूर्ण हुआ मानते हैं । आत्मा उस अनंत प्रेमी के प्रेम में मस्त हो उठती है। वह अपना पूर्ण शृंगार करती है। भक्ति की मेंहदी, भाव का अंजन, सहज स्वभाव की चूड़ी, स्थिरता का कंकण और सुरति का सिन्दूर लगाती है । अजपा की अनहद ध्वनि उत्पन्न होती है और अविरल आनन्द की झड़ी लग जाती है ।१ __ इन कवियों ने अनेक रूपकों के माध्यम से आत्मा और ब्रह्य के प्रेम की सरल अभिव्यक्ति की है । जव आनंदघन प्रेम के प्याले को पी कर अपने मत वाले चेतन को परमात्मा की सुगन्धि लेने को कहते हैं तब साधनात्मक रहस्यवाद की चरम परिणति दिर्ख पड़ती है "मनसा प्याला प्रेम मसाला, ब्रह्म अग्नि पर जाली । तन भारी अवठाई पिये कस, आगे अनुभव लाली ।। अगम प्याला पीयो मतवाला, चिन्ही अध्यातम वासा । आनंदघन चेतन खेले, देखे लोक 'तमासा ॥"२ उसी तरह संवेदनात्मक अनुभूति के कारण जब प्रिय को हृदय से अधिक ‘समीप अनुभव किया गया है वहां इनका प्रेममूलक रहस्यवाद निरूपित हुआ जिसकी विस्तृत चर्चा भक्तिपक्ष के अन्तर्गत हो चुकी है। आनंदघन की कविता से प्रिय के प्रति संवेदनात्मक अनुभूति का एक उदाहरण द्रष्टव्य है -"पीया बीन सुध बुध खूदी हो. विरह भुयंग निशास में, मेरी सेजड़ी खूदी हो ॥१॥"३ नैतिक विचार : जैन गूर्जर कवि नैतिक आचार-विचार के जीवन्त रूप रहे हैं। इन्होंने अपने प्रयत्नों द्वारा समाज को स्वस्थ एवं संतुलित पथ पर अग्रसर करने तथा व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की उचित प्राप्ति कराने में अपना जीवन अर्पित किया था। इनके साहित्य-सर्जन की प्रवृत्तियों में भी नीति समन्वित विचारधारा १. आनन्दघन पद संग्रह, पद २०, पृ० ४६ २. वही, पद २८, पृ० ७८-७६ ३. वही, पद ६२, पृ० २६४
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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