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________________ २३८ ___ आलोचना-खंड "शिव सुख चाहो तो, भजी धरम जैन को सार, ग्यानवंत गुरु पाय के, सफल करो अवतार ॥"१ कवि ने सच्चे जैन की व्याख्या की है तथा जैन के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कर "जैन दशा जस ऊंची" वताया है ।२ निदान : कवि जिनहर्ष ने बताया है, लोग धर्म धर्म चिल्लाते हैं, पर उसका सही. मर्म नहीं समझते । निदान रूप कवि परम्परागत रूढियों का विरोध कर धर्म का वास्तवित स्वरूप बताते हुए उसमें ज्ञान और दया की आवश्यकता पर बल देते हैं- . "धरम धरम कहै मरम न कोउ लहै, भरम में भूलि रहे कुल रूढ कीजिये। कुल रूढ छोरि कै भरम फंद तोरि के, सुगति मोरि के सुग्यान दृष्टि कीजिये । दया रूप सोइ धर्म तइ कट है कर्म, भेद जिन धरम पीउष रस पीजिये ।"३ कवि धर्मवर्द्धन ने धर्म ध्यान में लीन रहना सदैव उचित माना है "घर मन धर्म को ध्यान सदाइ । नरम हृदय करि नरम विषय में, करम करम दुखदाइ ॥ धरम श्री गरम क्रोव के घर में परमत परमते लाइ । परमातम सुधि परम पुरुष मजि, हर म तु हरम पराइ ।। चरम की दृष्टि विचार मत जोउरा, भरम रे मत भाइ । सरम बधारण सरम को कारण, धरमज धरम सी व्याइ ॥"४ . इन्होंने शुद्ध धार्मिक भूमिका के बिना माला के मनके फिराने की व्यर्थता बताते हुए कहा हैं"करके मणिके तजिक का ही अब, फेरहु रे मनका मनका ।"५ १. वही, पृ० ११५ २. गुर्जर नाहित्य संग्रह, भाग १, पृ० १५३-५४ ३. जिनहर्प धावली, उपदेश वावनी, पृ० ११५-१६ ४. वर्मवर्द्धन ग्रंथावली, पृ० १३ ५. धर्मवद्धन, थावली, धर्म वावनी, पृ० १३
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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