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aratant-खंड
इस युग के कवियों ने अपने युग के समाज का सूक्ष्म निरीक्षण कर उसके अनुरूप उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया है । अपने उपदेश, आचरण, एवं चरित्र कथात्मक व्याख्यान अथवा साहित्य द्वारा समाज को नैतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक चेतना को बल देते रहे हैं । इनके चौपाई - रासांदि ग्रंथों में जीवन के स्वस्थ चित्र भी आये हैं । महानंदगण ने अपने "अजना सुन्दरी रास" में अंजना को समाजजीवन के प्रति आस्थावान बताकर वीतरागी प्रभु से प्रेम करने की बात बताई है। यात्रा एवं संघ वर्णनों में भी इन कवियों ने समाज के नर-नारियों में तीयों के प्रति उमड़ता अपार स्नेह और उनके मधुर, स्वस्थ भांवमीने चित्र प्रस्तुत किये हैं । जिनराजमूरि कृत "श्री गिरनार तीर्थयात्रा स्तवन" पढ़ने से ऐसा लगता है मानो यात्रियों का एक दल उमड़ता हुआ चला जा रहा है । बहिन द्वारा बहिन को एक मधुर भावभीना आमंत्रण दिया जा रहा है
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"मोरी बहिनी हे बहिनी म्हारी ।
मोन अधिक उछाह है, हां चालउ तीरथ भेटिवा ॥ संवेगी गुरु साथ है, हां तेडीजइ दुख भेटिवा ॥ १ ॥ चढ़ि गढ़ गिरनार है, हा साथइ सहियर झूलरज । साजि वसन शृंगार है, हां गलि झवउ मक थूल रउ || २ || १
महात्मा आनन्दघन के काव्य मैं भी उस युग का समाज प्रतिबिम्बित है । इनके स्तवनों से पता चलता है कि सावेश धारी लोगों को किस
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प्रकार छलते थे, मृषा उपदेश देते थे और अपनी महिमा बढ़ाते थे । २ ऐसे समय कवि ने अपने असाधारण ज्ञान बल एवं परिपक्व विचारों से समाज का सच्चा पथप्रदर्शन किया । उय युग में एक ओर साधुओं के मृषा उपदेश और प्रवंचना का जाल फैल रहा था तो दूमरी ओर धर्म के गच्छभेद और मतमतांतरों में भ्रांत समाज किंकर्तव्यविमूढ़-सा बन गया था । समाज में आडम्बर एवं विषयासक्ति का जोर था । ३
अनेक कवियों ने समाज में वर्ण और जाति की मान्यता को व्यर्थ मान। है | कविं शुभचंद्र के विचार में सभी जीवों की आत्माएं समान है । आत्मा में कमी बाह ्यत्वं या शुद्रत्व प्रवेश नहीं कर सकता । कवि ने लिखा है
"उच्चनीच नीवि अप्पा हुवि, -
कर्म कलंक तणो की तु सोइ ।
१. जिनराजसूरि कृति कुसुमांजलि, अगरचंद नाहटा, पृ० ४२
२. आनंदघन चौवीसी, स्वामीसीमंधरा विनती ।
३. वही, अनंतनाथ स्तवन, प्रका० भीमसी माणेक, बम्बई ।
SK1.2.3 यशवान
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