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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता २३१ - भाई मुकी भइण, भइणि पिण मुक्या. भाइ, . . . अधिको व्हालो अन्न, गइ सहु कुटुम्ब सगाइ ।"१ - इसी तरह कवि ने,, मृगावती चौपाई" तथा अन्य" पौराणिक चरित्र" वर्णन के प्रसंगों में अपने युग के मिति चित्रो, वेशभूपा स्त्रियों की आभूषण प्रियता, गूर्जर देश की नाररियों की मनोवृत्ति आदि का सुन्दर चित्रण हुआ है । इनके कुछ शृगारगीतों में तथा" चारित्य चुनडी" में उस युग के चुनी, कुण्डल, चूडा; हार, नखफूल, विन्दली कटिमेखला, चूनडी, नेउरी आदि आभूषणों का उल्लेख हुआ है। इसी तरह अमयचन्द रचित", चूनडी" में तत्कालीन समाज में प्रचलित विविध व्यंजन एवं साधन-सामग्री का अच्छा परिचय है । कवि कुमुदचन्द्र कृत" ऋषम विवाहलो" में भी उस युग की विविध प्रकार की मिठाइयों का उल्लेख हुआ है। __कवि जिनराजसूरि ने समाज-जीवन की विषमताओं की ओर निदर्शन करते हुए उसे" करम" की अलख-अगोचर गति मान कर संतोप कर लिया है। क्योंकि उसकी गति को कोई समझ नहीं सका हैं - "पूरव कर्म लिखित जो सुख-दुख जीव लहइ निरधारजी, उद्यम कोडि करइ जे तो पिण, न फलइ अधिक लगार जी। . एक जनम लगि फिरइ कुआरी, एके रे दोय नारि जी । एक उदर भर जन्मइ कहीइ, एक सहस आधार जी ॥"२ इसी प्रकार की सामाजिक विषमताओं का प्रत्यक्ष अनुभव कवि धर्मवर्द्धन भी किया था "ऋद्धि समृद्धि रहै एक राजी सु, एक कर है ह हांजी हांजी। . एक सदा पकवान अरोगत, एक न पावत भूखो भी भाजी ॥" समाज और उसकी परिस्थिति से प्रत्येक युग का कवि या योगी प्रभावित होता आया है । सामान्य व्यक्ति समाज के आगे अपना व्यक्तित्व दवा लेता है, जबकि प्रभावशाली विद्वान उसे अपने अंकुश में रखते हैं। फिर भी उसकी रीति-नीति से प्रभावित तो आवश्य होते रहते है। १. सत्यासीया दुष्काल वर्गन छत्तीसी, समयसुन्दर कृति कुमुमांजलि, संपादक • - - अगरचन्द नाहटा,-पृ०.५०३ -- ... ... .... . २, जिनराजसूरि कृति कुसुमांजलि, संपा० अगरचंद नाहटा, पृ० ६३. ३. धर्मवर्द्धन ग्रंथावली, अगरचंद नाहटा, धर्म वावनी, पृ० ४ -
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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