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बालोचना-खंड
गुरु का ध्यान किया है । मट्ठारक मुभचन्द्र का कहना है सत्गुरु को मन में धारण किये विना शुद्ध चिप का ध्यान करने से भी कुछ नहीं होता 1१ कुशल लाभ अपनी स्थूलभद्र छत्तीसी में गुरु स्थलिभद्र के प्रसाद से "परमसुख को प्राप्ति २ तथा” श्री पूज्यवाहण गीतम्” में शुद्ध मन पूर्वक गुरू की सेवा करने से शिवसुख को उपलब्धि होने की बात कहते हैं | ३
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विचार पक्ष
सामाजिक यथार्थाकन, यद्युगीन सामाजिक समस्याएं और कवियों द्वारा प्रस्तुत निदान : इन जैन-गुर्जर हिन्दी कवियों का मुख्य हेतु वैराग्य, अध्यात्म एवं भक्ति की त्रिवेणी बहाना रहा है । अतः ये कवि तत्कालीन समाज की अवस्था एवं उसके रीति-रिवाजों की ओर विशेष लक्ष्य नहीं रख सके हैं । फिर भी इनका काव्य लोक-जीवन तथा जन-साधारण से बिलकुल भिन्न नहीं है । इनका सामाजिक जीवन से प्रभावित होना तथा इनकी अभिव्यक्ति में सामाजिक रीति-नीति का प्रतिविम्ब पड़ना अत्यंत स्वाभाविक है ।
संवत् १६८७ में गुजरात में भयंकर दुष्काल पड़ा था, जो " सत्यासीया दुष्काल" के नाम से प्रसिद्ध है । कवि समयमुन्दर ने उसकी दयनीयता एवं भयंकरता का सजीव वर्णन” सत्यासीया दुष्काल वर्णन छत्तीसी" में किया है । अकाल के कारण अन्नाभाव, समाज की दुर्दशा, सर्वत्र बिखरी लाशों एवं उसकी दुरगंध, गुरु, साबु एवं आचायो का भी धर्म और कर्तव्य से परागमुख होने एवं जन साधारण की त्राहि-त्राहि की पुकार को कवि ने वाणी दी है । सामाजिक जीवन की अस्त व्यस्ता का सरल राजस्थानी भाषा में चित्र खींचता हुआ कवि कहता है
"मांटी मुकी बहर, मुक्या बइरै पणि मांटी, बेटे मुक्या बाप, चतुर देतां जे चांटी |
१. तत्वसार दूहा, भद्दारक शुभचन्द्र, ठोलियान मंदिर जयपुर की प्रति ।
२. स्थूलभद्र छत्तीसी, कुशल लाभ, पहला पद्य, राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज. अगरचन्द नाहटा, पृ० १०५
३. दिल दिन महोत्सव अतिघणा, श्री संघ भगति सुहाय ।
मन शुधि श्री गुरु सेवी यह, जिणी सेव्यs शिव सुख पाई ॥
"श्री पूज्य वाहणा गीतम् " कुशल लाभ, ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, अगरचन्द नाहटा, सम्पादित, पृ० ११५