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________________ २२६ जन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता श्री जिनचन्द्र ! प्रमोदी होकर शीघ्र आ जाओ, तुम्हे देखकर मेरा हृदय जैसे अनिर्वचनीय-रस का आनन्द ले उठेगा।" १ प्रतीक्षा की वही वेचैनी और व्याकुल अनुनय विनय कवि समयसुन्दर के शब्दों में देखिए ."गुरु के दरस अँखियाँ मोहि तरसइ । ____ नाम जपत रसना सुख पावत सुजस सुणत ही श्रवण सरसइ ॥ १ ॥ श्री जिनसिंहसूरि आचारिज, वचन सुधारस मुखि वरसइ । समयसुन्दर कहइ अवहु कृपा करि, नयण सफल करउ निज दरसइ ॥ ३ ॥"२ कवि के शब्दों मे गुरु दीपक है, चन्द्रमा है, रास्ता बताने वाला है, पर जपकारी है, महान है, तथा" घाट उतारने वाला है ।३ कवि धर्मवर्धन ने जिनचन्द्रसूरि की वदना कहा है"जिणचद यतीश्वर वंदन को, नर नारी नरेसर आवत है । वरं मादल ताल कंसाल बजावत, के गुरु के गुण गावत है । बहु मोतीय तन्दुल थाल भरे, - नित सूहव नारि बधावत है । धर्ममीउ कहै पच्छराज कु वंदत, पुण्य उदै सुख पावत है ।। ४ ॥ "४ इन कविगों की भावुकता गुरु के प्रति भी, भगवान की भॉति ही मुखर उठी है। शिष्य का विरह पवित्र प्रेम का प्रतीक है । अत: इन कवियों ने ब्रह्म रूप मे ही १. वही, श्री जिन्द्रसूरि गीतानि- साधुकीति, पृ० ६१ २. समयसुन्दर कृत कुसुमांजलि,संपा० अगरचन्द नाहटा, " श्री जिनसिंहसूरिगीतानि, __गीत २२, पृ० ३६६ ३. ,गुरु दीवउ गुरु चन्द्रमारे, गुरु. देखाउइ वाट, गुरु उपकारी गुरु वडारे, गुरु उतारइ धाट ।" जिनचन्द्र सूरि गीत, समयसुन्दर कृत कुसुमाजलि . ४, धर्मवर्धन प्रथावली, संपा० अगरचन्द नाहटा, "गुरुदेग स्तवनादि, पृ०२३६-४० -
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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