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________________ जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता २२५ कवि जिनहर्ष ने चौवीसी तीर्थंकरों की वन्दना करते हुए कहा है, 'चौवींसों जिनवर सुख को देने वाले हैं। मन को स्थिर कर शुद्ध भाव से प्रभु का कीर्तिगान करता हूँ। जिसका नाम कल्पवृक्ष के समान वर दायक है, जिन्हें प्रणाम करने से नवनिधियां प्राप्त होती हैं ।१ कवि विनयचंद्र की प्रभु से चातक-जलधार को सी प्रीति जुड़ गई है। दिल में प्रभु का नाम निशि-दिन ऐसा तो बसा हुआ है जैसे वक्षस्थल पर हार पड़ा रहता है "जासौं प्रीति लगी है ऐसी, ज्यों चातक जल धार । दिल में नाम वस तसु निसदिन, ज्यु हियरा भईहार ॥३॥"२ कवि विनयविजय प्रभु से न दौलत की कामना करते हैं और न विषय सुत्रादि की। उनके लिए 'आठो याम' प्रभु का नाम ही 'जिउं' को रंजन करने वाला है "दोलत न चाहुं दाम, कामसुन मेरे काम ।। नाम तेरो आंठो जाम, जिउ को रंज हे ॥१॥"३ कवि समयसुन्दर भी अन्तर्यामी जिनवर को जपने की सलाह देते हैं, क्योंकि चोवीस तीर्थङ्कर त्रिभुवन के दिनकर हैं, उनका नाम जपने से नवनिधियां प्राप्त होती हैं "जीव जपि जपि जिनवर अन्तरयामी । ऋषम अजित संमब अभिनन्दन । चौवीस तीर्थंकर त्रिभुवन दिनकर, नाम जपत जाके नवनिधि पामी ॥"४ - जिनवर चवीसे सुखदाई ।' .. भाव भगति धरि निज मन स्थिर करी, कीरति छन शुद्ध गाई। जाकै नाम कल्पवृक्ष सम वरि, प्रणामति नवनिधि पाई ॥" -जिनहर्ष चौवीसी. जिनहर्ष ग्रंथांवली। विनयचन्द्र कृत कुसुमांजलि, संपा० मवरलाल नाहटा, 'श्री पार्श्वनाय स्तवनम्' पृ० ७०। ३. भजनसंग्रह धर्मामृत, संपा० पं० बेचरदास, मजन नं० ३१, पृ. ३४। ... ४. समयमुन्दर कृत कुसुमांजलि, संपा० अर्गरचन्द नाहटा, "श्री वर्तमान चौवीसी स्तवन', पृ० १ ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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