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बालोचना-खंड
सांसारिक वैभव तो मिलते ही हैं, उनके प्रति आकर्षण भाव भी प्राप्त होता है और जीवन मोक्ष गामी होता है। नाम-जप से चक्रवर्ती का पद प्राप्त करना तो आसान है । इस प्रकार नामजप से इहलोक और परलोक दोनों ही सुघर जाते हैं। __कवि कुमुदचन्द्र ने अपने 'मरत वाहुबलि छन्द' के प्रारम्भिक मगला-चरण में आदीश्वर प्रमु का नाम मात्र लेने से संसार का चक्र ( जन्म-मरण का चक्कर ) छूट जाने की बात कही है ।१ कुशल लाम ने पंचपरमेष्ठी के नाम की महिमा गाते हुए कहा है कि 'नवकार' को जपने से संसार की संपत्तियां तो मिल ही जाती हैं, शाश्वत सिद्धि भी प्राप्त होती है १२ श्री यशोविजयजी ने 'आनन्दधन अष्टपदी' में बताया है कि 'अरे चेतन ! तू संसार के भ्रमजाल में क्यों फंसा है। भगवान जिनेन्द्र के नाम का स्मरण कर । सद्गुरु का भी यही उपदेश है।
"जिनवर नामसार मज आतम, कहा भरम संसारे ।
सुगुरु वचन प्रतीत भये तव, आनन्दधन उपगारे ।।"३ ।
कवि जिनहर्ष ने भी प्रभु को भजने की सलाह देते हुए कहा है, 'रे प्राणि ! यदि तू मन का सच्चा सुख चाहता है तो अव उठ, प्रातःकाल हो गया है। प्रमु का भजन कर ! आलस्य छोड़कर जो 'साहिब' को भजता है, उसकी समस्त आशाएँ पूर्ण होती हैं
"भोर भयो उठि मजरे पास । जो चाहै तू मन सुख वास ।
आलस तजि भजि साहिब कू। कहै जिनहर्ष फलै जु आस ||||"४
१. पणविवि पद आदीश्वर केरा, जेह नामें छूटे भव फेरा ।
-भरत बाहुबलि छन्द, कुमुदचंद्र, पद्य .१, प्रशस्ति संग्रह, जयपुर पृ० २४३ । २. नित्य जपीई नवकार संसार संपति सुखदायक;
मिद्धमंत्र शाश्वतो इम जंपे श्री जग नायक । -नवकार छन्द, कुशल लाभ, अन्तिम कलश, जैन गूर्जर कविओ, भाग १,
पृ० २१६ । ३. आनन्दवन अष्टपदी, य गोविजयजी, आनन्दघन वहत्तरी, रामचन्द्र ग्रंथमाला,
बम्बई। '.. - ४. हिन्दी पद संग्रह, डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर, पृ० ३३६ ।