________________
आलोचना-खंड
गीत में कवि अपने आत्माराम को समझाते हुए कहते हैं, 'संसार में मानव जन्म बड़ा अमूल्य है, अनेक पुण्यों से मानव जन्म मिला है। अच्छा अवसर है, हे लाल ! तुम होरी क्यों नहीं खेलते | आयु घट रही है, अध्यात्म भाव धारण करो, विषयादि वृथा एवं मृग जल हैं । समतारूपी रंग, सुरुचि रूपी पिचकारी और ज्ञान रूपी गुलाल मे होरी खेलने सज जाओ । कुमति रूपी कुल्य पर झपट पड़ो और सब मिलकर उसे शिथिल कर दो। इस प्रकार अपने घट में ही फाग रचाओ । शम दम रूपी साज बजाकर निर्मल भाव से प्रभु गुण गान करो और गुलाल रूपी सुगन्ध फैलाकर, निर्गुण का ध्यान करो । रे मानव अलमस्त भला क्या पड़ा रहता है। इस भाव का पद देखिए"अयसो दाव मीत्योरी, लाल क्युं न खेलत होरी | अयसो ० मामव जनम अमोल जगत में, सो बहु पुण्ये लह्योरी; अब तो धार अध्यातम शैली, आयु घटन थोरी थोरी;
वृथा नित विषय ठगोरी || अयसो ० १ ॥ समता सुरंग सुरुचि पीचकारी, ज्ञान गुलाल सजोरी । झटपट घाय कुमति कुलटा ग्रही, हलीमली शिथिल करोरी ।
सदा घंट फाग रचोरी || अयसो ० २ ||
२०८
शम दम साज बजाय सुघटनर, प्रभु गुन गान न चोरी । सुजम गुलाल सुगंध पसारो, 'निर्गुण व्यान धरोरी |
कवि धर्मवर्धन की माथ अध्यात्म फाग का उदात्त है-
कहा अलमस्त परो री || अयसो ०|| ३ || १ 'वसंत धमाल' भी ऐसी ही रचना है । वसंत वर्णन के सुन्दर सुमेल बैठाया है । प्रसंग बड़ा ही रमणीय एवं
" सकल सृजन-सैली मिली हो, खेलण समकित ख्याल | ज्ञान सुगुन गावै गुनी हो, खिमारस सरस खुस्याल ॥१॥
खेलो संत हसंत वसंत में हो, अहो मेरे सजनां रागः सु फाग रमंत ॥२॥ जिन शासन वन माहे मौरी विविध क्रिया वनराय ।
कुशल कुसम विकसित भये हो, सुजस सुगंध सुहाय |०||३|| कुह की शुभमति कोकिला हो, सुगुरु वचन सहकार |
भइ मालति शुभ भावना हो, : मुनिवर मधुकर सार | | ० ||४|| प्रवचन वचन पिचरका वाहै यार सु प्यार लगाइ । शुभ गुण लाल गुलाल की हो, झोरी-भरी अति हि झुकाइ ||५||
१. गूर्जर साहित्य संग्रह, भाग १, यशोविजयजी, पृ० १७७ ।