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जन गूर्जर कवियो की हिन्दी कविता
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अत्यधिक सुख अनुभव करे ।'१ ठीक इसी प्रकार प्रत्येक मास में विरह में उठने वाली विभिन्न भाव-दशाओं के उत्तमोत्तम चित्र इन कवियों ने प्रस्तुत किये हैं । विनयचंद्र, झ्यामसुन्दर और धर्मवर्धन के 'बारहमास' भी इस दृष्टि से छच्छे काव्य हैं । आपाढ़ में मेह उमड़ आया है, सब के प्रिय अपने-अपने घर आ गये हैं। समयसुन्दर की राजुल भी अपने प्रिय की प्रतीक्षा कर रही है ।२ 'आध्यात्मिक होलियाँ
जन गूर्जर कवि आध्यात्मिक होलियों की भी रचना करते रहे हैं, जिनमें होली के अंग-उपांगों से आत्मा का रूपक जोड़ा है। ऐसी रचनाओं में एक विशेप आकर्षण है, पावनता भी है। 'फाग' संबक रचनाओं में यही बात है। इस प्रकार की रचनाओं में लक्ष्मीवल्लभ कृत 'अध्यात्म फाग' महत्वपूर्ण कृति है। यह एक सुन्दर रूपक काव्य है । शरीर रूपी वृन्दावन कुन्ज में ज्ञान वसन्त प्रगट होता है । बुद्धि रूपी गोपी के साथ पंच गोगों (इन्द्रियां) की मिलन-वेला सजती है । सुमति राधा के साथ आतम हरि होली खेलते हैं ।३ यशोविजय जी के भी 'होरी गीत' मिलते हैं। एक
घन की घनघोर घटा उनही, विजुरी चमकंति झलाहलिसीं । विचि गाज अगाज अवाज करत सु, लागत मो विप वेलि जिसी ।। पपीया पिउ पिउ रटत रयण जु, दादुर मोर वदै अलि सी। ऐसे श्रावण में यदु नेमि मिल, सुन्न होत कहै जसराज रिसी।
-नेमि बारहमासा, जिनहर्ण, जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खंड २,
पृ० ११७६ । ३. आपाढ़ उमट्या मेह, गया पंथि आपणि गेह ।
हुँ पणि जोडं प्रिय वाट, खांति छाउं खाट ॥१२॥ -समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, संपा० अगरचन्द नाहटा, नेमिनाथ वारह
मासा, पृ० १२१ । . ३. आतम हरि होरी खेलिये, अहो मेरे ललनां
सुमति राधाजू के संगि। मुख सुरतरु की मंजरी हो, लई मनु राजा राम, अब कउ फाग अति प्रेम कर हो, सफल कीजे मलि स्याम । आतम० .
बजी सुरत की बांसरी हो, उठे अनाहत नादं, तीन लोक मोहन भए हो, मिट गए दंद विषात आतम०॥७॥ --अध्यात्म फागु, लक्ष्मीवल्लभ, प्रस्तुत प्रबन्ध का तीसरा प्रकरण ।