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________________ जन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता २०१ प्रेम तत्व के पारखी कवि जिनहर्ष ने भी इसी प्रकार की प्रेम-पीड़ा का प्रकाशन किया है । इनके विरह-वर्णन के प्रसंग बड़े ही मार्मिक वन पड़े हैं। विरही मन की विभिन्न दशाओं का स्वाभाविक वर्गन जिनहर्ष की कविता में देखने को मिलता है । प्रेम-तत्व का ऐसा उज्ज्वल निदर्शन कम कवियों ने ही किया है। पावस ऋतु है, घनघोर घटा उमड़ आई है। प्रिय के विना कवि की विरहिणी आत्मा तड़प उठी है, आंखों में नीर उभर आया। संयोग की लालसा और सोलह सिंगार की बात मन में ही रह गई । मन अकुला उठा है, फिर भी प्रिया का मन प्रिय-चरणों में लिपटा हुआ है । ऐमी विरह-दुखिता जगत् में और कोई न होगी "सखी री घोर घटा घहराई । प्रीतम विणि हुँ भई अकेली, नइणां नीर भराई ॥१॥ देखि संयोगिणि पिउ संग खेलत, सोल सिंगार बनाई। मन की बात रही मन ही महं, मन ही मई अकुलाई ॥२॥ धन वैपारी प्यारी प्रिउ की, रहत चरण लपटाई। मो सी दुखणी अउर जगत में, कहत जिनहरख न काइ ॥३॥"१ विरह के ऐसे प्रसंगों में कवि के हृदय का भक्ति-रस मिश्रित माधुर्य भाव टपक पड़ा है। प्रेम-नत्व के गायक कवि जिनहर्प ने अपनी 'दोधक-छत्तीसी' रचना में विरही मन की विभिन्न दशाओं का बड़ा ही स्वाभाविक एवं मार्मिक वर्णन किया है ।२ जानानंद की विरहिणी में भी यही भाव है। प्रिय परदेश है, वसंत ऋतु रंग १. जिनहर्ष ग्रन्थावली, संपा० अगरचन्द नाहटा, पद संग्रह, पृ० ३४५ । जिण दिन सज्जन वीछड्या, चाल्या सीख करेह । नयगे पावस उलस्यो, झिरमिर नीर झरेह ।।१।। सज्जण चल्या विदेसडै, ऊमा मोल्हि निराश ।। हियडा में ते दिन थकी, भाव नाहीं सास ॥२॥ जीव थकी वाल्हा हता, सज्जनिया ससनेह । आडी भुय दीधी घणी, नयण न · दीस तेह ।।३।। खावी पीवी खेलवी, कांई न • गंमइ ..मुम्झ । हियडा मांही रातं दिन, ध्यान धरूं'. इक तुज्झ ।।४।। सयणा सेती प्रीतडी, कीधी घण सनेह । दैव विछोहो पाडियो पूरी न पड़ी तेह ॥५॥ -~-दोधक छत्तीसी, वही, पृ० ११७ ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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