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________________ १७२ परिचय खंड कुमार चौढालिया", "लघु साधु चन्दना" तथा "सीता आलोयणा" का प्रणयन किया था ? __ "सीता आलोयणा" कवि की महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय कृति है । इममें कवि ने ६३ पद्यों में सीता के बनवास समय में की गई आत्म-विचारणा बटा मूक्ष्म एवं सजीव वर्णन किया है। मापा शैली की दृष्टि से एक उदाहरण पर्याप्त होगा "सतीन सीता सारखी, रति न राम समान, जती न जम्बू सारखो, गती न मुगत सुधांन । सीताजी क रामजी, जव दीनो वनवान, तब पूरव कृत करमकु, याद करे अरदास ।" भाषा गुजराती प्रभावित हिन्दी है। कनककुशल भट्टार्क : (सं० १७६४ आसपास) कच्छ (गुजरात) के महाराजा राव श्री लखपतसिंह जी कवि-कोविदों के बड़े चाहक थे। उन्होंने ब्रजमापा काव्य रचना की शास्त्रीय शिक्षा दी जाने वाली पाठशाला की स्थापना की थी। इस पाठशाला के योग्य संचालक जैन साधु थी कनककुगल नियुक्त किये गये। ये राजस्थान के किशनगढ़ नगर के कच्छ प्रदेश में से आये थे ।२ कनककुगल संस्कृत और ब्रजभापा के कुगल साहित्यकार तथा प्रकांड विद्वान थे। महाराव ने उन्हें भट्टार्क की पदवी से विभूषित किया था। कच्छ के इतिहास से भी यह पता चलता हैं कि कनककुल जी से लखपतसिंह ने ब्रजभाषा साहित्य का अभ्यास किया था। इस पाठशाला में किसी भी देश का विद्यार्थी प्रशिक्षण प्राप्त करने आ सकता था और उसके खाने-पीने और आवास का प्रवन्ध महाराव द्वारा होता था ।३ इनके गुरु प्रतापकुशल थे। गुरु बड़े प्रतापी, चमत्कारी एवं वचन-सिद्ध प्राप्त थे । शाही दरबार में इनका काफी सम्मान था। कुंअरकुशल के 'कवि वंश वर्णन' पे पता चलता है कि कनककुशल अपने समय के सम्मानित व्यक्ति थे। कनककुशल और कुअरकुशल दोनों गुरु-शिष्य कच्छ के महाराउ लखपतसिंह जी के कृपापात्र तथा सम्मान प्राप्त आचार्य एवं कवि थे। इन्होंने ऐसे ग्रंथों की रचना की है जो उनके असाधारण व्यक्तित्व, कवित्व तया आचार्यत्व का प्रमाण प्रस्तुत करते है। इनकी १. जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड २, पृ० १४५३-५४ । २. कुअर चंद्रप्रकाशसिंह, भुज (कच्छ) की ब्रजभाषा पाठशाला, पृ० २१ । ३. कच्छकलाधर, भाग २, पृ० ४३४ ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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