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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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धर्ममूर्तिसूरि१ के शिप्य कल्याणसागरसूरि गुजरात के ही थे। इनका परिचय १७ वीं शती के कवियों के साथ दिया गया है।
कवि हेम और उनकी एक कृति "मदन युद्ध" का उल्लेख श्री पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह ने किया है। इसकी मूल प्रति उनके पास सुरक्षित है ।२ इसी कृति के आधार पर इसका संपादन भी किया है जो "आचार्य आनन्दशंकर ध्रु व स्मारक ग्रंथ" में प्रकाशित है ।३ इस कृति में गुजराती और राजस्थानी शब्द प्रयोगों को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि कवि का संबंध राजस्थान और गुजरात दोनों से रहा है।
"मदन युद्ध" में मदन और रति का संवाद है। जैनाचार्य श्री कल्याणसागरमूरि को महाव्रतों में से न डिगाने के लिए रति कामदेव से प्रार्थना करती है। कामदेव रति की प्रार्थना अस्वीकार कर शस्त्रास्त्र से सज्जित हो संयमशील आचार्य को साधनाच्युत करने के लिए प्रयाण करता है। परन्तु तपस्वी आचार्य की सात्विक गुणप्रभा के आगे कामदेव इतवीर्य बनता है और अन्त में तपस्वी मुनि के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करना है । भाषा शैली की दृष्टि से एक उदाहरण दृष्टव्य है
"ओर उपाव को कीजीइं ज्यों यह माने मोहें । चूप रहो अजहुँ लज्जा नहीं काहा कहूं पीय तोहें ।।८६n एक हारि को अधिक दुख कहें वेंन जु मेंन ।
दाधे उपर लोन को खरो लगावत ऐन ॥१०॥" इस काव्य की रचना सं० १७७६ में हुई थी।४ काव्य साधारण है । भाषा सरल एवं मरस है। कुशल : (सं १७८६-८९)
ये लोकागच्छीय (गुजरात) रामसिंह जी के शिष्य थे ।५ कवि कुशल ने सं० १७८६ में 'दगार्ण मद्र चोढालिया', सं० १७८९ चैत्र सुदि दूज को मेडता में "सनत
१. मदन युद्ध, अन्तिम कलश, आनन्दशंकर ध्र व स्मारक ग्रंथ, पृ० २५५ । २. आनन्दशकर व स्मारक ग्रंथ, मदन युद्ध, पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह,
पृ० २३८ । ३. आनन्दशंकर ध्रुव स्मारक ग्रंथ, गुजरात वर्नाक्युलर, सोसायटी, अहमदाबाद,
पृ० २४३ से २५५ में प्रकाशित । ४. आचार्य आनन्दशंकर ध्रुव स्मृति ग्रेथ, पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह का लेख,
पृ० २३८ । ५. जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड २, पृ० १४५३ ।