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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता १६९ राजकवि जीवराम अजरामर गौर ने इन्हें उत्तर भारत का श्री गौड़ ब्राह्मण माना है। वे बताते हैं किसनदास की माता अपने पति के निधन के बाद अपने पुत्र किसनदास और पुत्री रतनवाई को लेकर श्री संघराज जी महाराज के आश्रय में अहमदाबाद चली आई थीं । इन्हीं संवराज जी ने उन्हें पढ़ाया और कविता वनाना सिखाया । सिहोर निवासी श्री गोविन्द गिल्लामाई इन्हें गुजरात का ही मूल निवासी बताते हैं ।२ इनके रचना काल के सम्बन्ध में अन्तःसाक्ष्य के आधार पर केवल इतना ही पता चलता है कि ये १८ वीं शताब्दी में वर्तमान थे और संवत् १७६७ के आश्विन सुदी १० के दिन अपनी वहन रतनवाई, जो जैन दीक्षा प्राप्त थी, उसकी मृत्यु निमित्त 'उपदेश वावनी' (किशन वावनी), काव्य ग्रंथ की रचना की।३ ___ भापा के आधार पर यह भी अनुमान किया गया है कि कवि का सम्बन्ध गुजरात के साथ-साथ राजस्थान से भी रहा हो। क्योंकि कृति में राजस्थान में प्रचलित देशज शब्दों, मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग हुआ है। कुछ भी हो कवि जैन धर्म में दीक्षित था और गुजरात से दीर्घकाल तक निकट के सम्बन्धित रहा है, यह तो सिद्ध ही है। जैन धर्मावलम्बी होते हुए भी किसनदास के विचार असाम्प्रदायिक और उदार थे। किसनदास जी इस 'उपदेश वावनी' के अतिरिक्त और कोई रचना देखने में नहीं आई। ___ 'उपदेश वावनी'४ किसी समय गुजरात में अत्यधिक लोकप्रिय रही है । अनेक तो इसे कंठस्य कर लेते थे। वहत संभव है, इसी लोकप्रियता के कारण ही 'उपदेश वावनी' इसका मूल नाम बदलकर 'किशन बावनी' हो गया । 'उपदेश बावनी' शांतरस की उत्तम रचना हैं । इसमें कुल मिलाकर ६२ कवित्त हैं । इस काव्य के प्रारम्भ के पांच कवित्त जैन सूत्र 'ओं नमः सिद्ध' के प्रत्येक वर्ण से प्रारम्भ कर रचे हैं। फिर वर्णमाला के क्रम से अर्थात् 'अ' से प्रारम्भ कर 'ज्ञ' तक के प्रत्येक अक्षर से एक एक कवित्त रचा है। इस प्रकार ५७ कवित्तों की क्रमिक १. किशन वावनी, संपा० गोविन्द गिल्लामाई, पृ. २ (सन् १९१५) । २. वही, पृ०३। ३. उपदेश वागनी, पद्य संख्या ६२ । ४. (क) प्रकाशित-किशन वावनी, संपागोविन्द गिल्लामाई (सन् १९१५) । (ख) प्रकाशित-गुजरात के हिन्दी गौरव मंथ-डॉ० अम्बाशंकर नागर, पृ० १५७-८२।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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