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गुजरात प्रांतीय हिन्दी-साहित्य के सम्बन्ध में अब तक जो शोध-प्रवन्ध प्रस्तुत किये गए हैं उनमें डॉ० हरीश शुक्ल का प्रस्तुत शोध-प्रवन्ध अनेक दृष्टियों से विशेष महत्व रखता है । डॉ० शुक्ल ने पाटण तथा अन्य गुजरात एवं राजस्थान के हस्तलिखित ज्ञान मंडारों में सुरक्षित पांडुलिपियों के आधार पर एक नितांत मौलिक एवं अछूते विपय का उद्घाटन किया है । उन्होंने गुजरात के अचल में आवृत्त मध्यकालीन जैन कवियों के हिन्दी कृतित्वका, एक सुनिश्चित समय-मर्यादा निर्धारित करके, अनुसंधान, अध्ययन एवं विवेचन प्रस्तुत किया है । मेरी दृष्टि में उनका यह कार्य उस गोतेखोर के जैसा है जो अगाध सागर में डुबकी लगाकर अनमोल मोती बटोरता है । मुझे विश्वास है, अगाध जैन महार्णव से बटोरे गए ये काव्य-मौक्तिक निश्चय ही सरस्वती के कंठामरण की गोमा में अभिवृद्धि करेंगे।
___ डॉ. हरीश शुक्ला ने यह कार्य यद्यपि विशुद्ध ज्ञानर्जन की भूमिका पर किया है तथापि इससे प्रसंगत देशभर की सांस्कृतिक एकान्विति एवं राष्ट्रमापा की व्यापक परम्परा का भी अभिज्ञान होगा । आशा है शोध गुणों से अलंकृत यह शोधकार्य-समस्त विद्वज्जनों एव साहित्य-प्रेमियों द्वारा समाहत होगा।
भापा साहित्य भवन गुजरात युनिवर्सिटी अहमदावाद-६ २५-१२-७५
--डां० अम्बाशंकर नागर अध्यक्ष, हिन्दी विभाग गुजरात युनिवर्सिटी
अहमदाबाद