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________________ पुरोवाक यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि स्वातंत्र्योत्तर-शोघ में क्षेत्रीय एवं तुलनात्मक शोध को विशेष प्रोत्साहन मिला है। हिन्दी को संविधान-द्वारा मान्यता प्राप्त हो जाने के पश्चात् उसका पठन-पाठन एवं अध्ययन-अनुशीलन देश भरके विश्वविद्यालयों में होने लगा। हिन्दीतर प्रदेश के अनुसंघित्सुओं ने जब शोध के क्षेत्र में पदार्पण किय तो स्वभावतः उनका ध्यान सबसे पहले अपने अपने क्षेत्रों की सहित्यसंपदा की ओर ही गया । इस क्षेत्रीय शोध के फलस्वरूप वगाल, पंजाब; महाराष्ट्र एवं गुजरात के आंचल से हिन्दी का प्राचीन साहित्य विपुल मात्रा में प्रकाश में आया । कहने की आवश्यकता नहीं कि यह साहित्य भापा एवं साहित्यिक गुणपत्रा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ । जहाँ तक गुजरात का प्रश्न है, एक तो हिन्दी भापी प्रदेश का निकटवर्ती प्रदेश होने के कारण, दूसरे वल्लभ संप्रदाय, स्वामीनारायण संप्रदाय, संतमत, सूफी संप्रदाय और जैनधर्म के प्रभाव के कारण, और तीसरे गुजरात के मुसलिम शासकों तथा राजपूत राजाकों के हिन्दी प्रेम के कारण, इस प्रदेश के अंचल में हिन्दी को फूलने-फलने का पर्याप्त अवसर मिला। इसीलिए हिन्दी मापा एवं साहित्य को हिन्दीतर मापा-मापी प्रदेशों का जो प्रदान है, उसमें गुजरात का प्रदान सर्वोपरि है । इस प्रदेश में १५वीं शती से आज तक सैकड़ों कवियों ने डिंगल, ब्रज एवं खड़ीवोली में उत्कृष्ट साहित्य का सृजन किया है । इस साहित्य के प्रकाश में आने से एक ओर जहाँ भारत के पश्चिमांचल में मध्यकाल में हिन्दी की व्याप्ति के साक्ष्य समुपलव्ध हुए है । वहाँ दूसरी ओर उससे भारत की सांस्कृतिक एकता एवं भारतीय साहित्य की एकान्विति की भी संपुष्टि हुई।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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