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जैन गुर्जर कवियों को हिन्दी कविता
अपछर जेम अनूप मुलकि मानव मन मोहे |
कलोल केलि बहु विधि करें, भूरिगुणे पूरण भरी,
चन्द्र कहै जिणधरम विण कामिणी ते किया कामरी ।"
इस चरित्र कथा द्वारा कवि ने सदाचरण, मानवधर्म एवं पुरुषार्थ का उत्तम आदर्श व्aनित किया है । भाषा सहज, प्रसंगानुकूल एवं सरल है । भाषा पर गुजराती का प्रभाव स्पष्ट लक्षित है । कवि की यह कृति बड़ी सरल एवं सरस काव्यकृति वन पड़ी है ।
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कवि की अन्य कृतियां भी विविध ढालों रचित भक्तिरस की बड़ी सरल काव्य-कृतियां हैं । फबती हुई उपमाएं, ललित शब्द योजना तथा सरल भावाभिव्यक्ति इनके आकर्षण हैं । कवि की मुक्तक गीतादि रचनाओं में भी मार्मिक उद्गार व्यक्त हुए हैं। कहीं सरल भक्ति, कहीं वक्रोक्तिपूर्ण उपालंभ तो कहीं विभिन्न रसों की भावधारा देखते ही बनती है । भाषा की प्रौढ़ता, पदलालित्य और लोक-संगीत का मावुर्य सहज ही मन को आकृष्ट कर लेता है । एक उदाहरण द्रष्टव्य है
मांई' मेरे सांवरी सूरति सुं प्यार |
जाके नयन सुधारस भीने, देख्यां होत करार ॥ 'जासी प्रीति लगी है ऐसी, ज्यों चातक जलधार । दिल में नाम वसै तसु निसदिन, ज्युं हियरा मई हार ॥
हंसरत्न : ( रचनाकाल सं० १७५५ आसपास )
तपगच्छ के विजयराजसूरि की परम्परा में हंसरत्न हुए है ।१ ये उदयरत्न के . सहोदर भाई थे । इनके पिता का नाम वर्धमान था और माता का नाम मानवाई था । इनका दीक्षापूर्व का नाम हेमराज था । इनका स्वर्गवास मीयां गांव (गुजरात) में सं० १७६८ चैत्र शुक्ल १० को हुआ ।२ इनकी दो रचनाएँ प्राप्त है । 'चौवीसी' और 'गिक्षागत दोवका' । शिक्षाशत दोधका' में व्यावहारिकं जीवनोपयोगी उपदेशों से युक्त सौ से भी अधिक दोहों का संग्रह है । 'चौवीसी' के अधिकांश स्तवन हिन्दी में है जिन पर गुजराती का प्रभाव अत्यधिक है । 'चौवीसी' के स्तवन विभिन्न देशियों में निबद्ध सरल एवं सरस बन पड़े हैं । इसकी रचना सं० १७५५ माघ कृष्ण ३ मंगलवार को हुई |३
१. जैन गुर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड २, पृ० १४५० ।
२. जैन गुर्जर साहित्य रत्नो, भाग १, सूरत, पृ० २३० ॥ ३. जैन गूर्जर कविओ, भाग २, पृ० ५६१ |