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परिचय खंड
में रचनाएं की हैं। इनकी रचनाओं में प्रयुक्त राजस्थानी लोकगीतों की देशियों को देखते हुए श्री भवरलाल जी नाहटा ने यह धारणा की है कि कविवर का जन्म राजस्थान में ही कहीं हुआ होगा ।१ इनकी प्रथम रचना 'उत्तमकुमार चरित्र चौपाई' की रचना संवत् १७५२ में पाटण में हुई ।२
इनकी विभिन्न कृतियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कवि ने अपनी विद्वत गुरु परम्परा से साहित्य, जैनागम, अध्यात्म तथा श्रमण संस्कृति का बड़े मनोयोगपूर्वक अध्ययन किया होगा। इनकी भाषा में संस्कृत शब्दों का बाहुल्य देखते हए यह धारणा भी उतनी ही सत्य है कि कवि ने संस्कृत भाषा एवं काव्य ग्रंथों का भी पूर्णरूपेण अध्ययन किया था। इनके विहारादि की जानकारी के लिए भी इनकी कृतिया ही प्रमाण है। इनकी प्राप्त रचनाएं संवत् १७५२ से १७५५ तक की हैं । कुछ रचनाओं में संवतोल्लेख नहीं है। इनकी अधिकांश रचनाएँ गुजरात में ही रची गई हैं । पाटण और राजनगर (अहमदावाद) में रचित कृतियां विशेप है। ‘उत्तमकुमार चरित्र चौपाई', 'वाडी पार्श्वस्तवन' तथा 'नारंगपुर पार्श्व स्तवनादि' की रचना पाटण में हुई । विहरमान वीसी, स्थूलिभद्र वारहमासा, ११ अंग सज्झाय तथा चौवीसी की रचना राजनगर (अहमदावाद) में हुई।
कवि विनयचंद्र प्रतिभासम्पन्न एक समर्थ विद्वान तथा उच्च कोटि के कवि थे। उनकी अल्पकाल की रचनाओं से ही यह बात सिद्ध है और भी कई रचनाओं का निर्माण कवि ने किया होगा-इस ओर विशेष शोध की आवश्यकता अवश्य है । कवि की उपलब्ध रचनाओं में उपर्युक्त रचनाओं के फुटकर स्तवन, वारहमासे, सज्झाय, गीत आदि भी है। .
'उत्तमकुमार चरित्र चौपाई' कवि की यह प्रथम प्राप्त कृति है। इसमें कवि की विद्वता एवं कविस्व मुखर उठा है। जैन धर्म परायण और सुगील मदालसा के अप्रतिम सौन्दर्य का वर्णन द्रष्टव्य है__"नारी मिग्गानयन, रंगरेखा, रस राती;
वदे सुकोमल वयण महा भर यौवन माती। . सारद वचन स्वरूपे, सकल सिणगारे सोहै,
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१. विनयचंद्र कृति कुसुमांजलि, भंवरलाल नाहटा, पृ० ५ । २. संवत सतरै बावन रे, श्री पाटण पुर मांहिं,
फागुण सुदि पांचम दिन रे, गुरुवारे उच्छाहि । -श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपाई, विनयचंद्र कृति कुसुमांजलि, पृ० २०७ ।