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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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पद लालित्य, भाषा सौन्दर्य, संगीतमयता एवं चित्रोपमता से युक्त कवि की यह रचना उत्तम काव्य कृतियों में स्थान पाने योग्य है। ऋपभसागर : ( रचनाकाल सं० १७५० आसपास)
___ तपगच्छ के पंडित ऋद्धिसागर के शिष्य ऋषभसागर के जन्म, दीक्षा, विहारादि तथा स्वर्गवास आदि का अभी कुछ भी पता नहीं लगा है। इनकी गुरु परम्परा इस प्रकार बताई गई है-चारित्रसागर, कल्याणसागर, ऋद्धिसागर, ऋषभसागर ।१ इन्होंने गुजराती में विद्याविलास रास तथा गुणमंजरी वरदत्त चौपई (आगरा संवत् १७४८ ) की रचना की है ।२ इनकी संवत् १७५० के आसपास रचित चौवीसी भी मिलती है ।३ 'चौवीसी' के अधिकांश स्तवन हिन्दी में रचित हैं जिन पर गुजराती का प्रभाव विशेष है। भाषा शैली के उदाहरण के लिए कुछ पंक्तियां द्रष्टव्य हैं
"त्रिशलानन्दन त्रिहुं जगवन्दन, आनन्दकारी ऐन । साचो सिधारथ सेवन्यो हो, निरखित निर्मल नैन ॥६॥ सकल सामग्री लइ इण परि, मिलज्यो, साचै भाव ।
ऋद्धिसागर शीस ऋषभ कहे, जो हुवै अविचल पदनो चान ॥७॥" चौवीसी की रचना बड़ी ही सरल भाषा में हुई है। विनयचंद्र : (सं० १७५१-५५ रचनाकाल )
. विनयचंद्र नाम के कई जैन कवि हो गये हैं। एक विनयचंद्र १४ वीं शताब्दी में तया दूसरे १६ वीं शताब्दी. में तथा तीसरे तपागच्छीय विजयसेनसूरि की परम्परा में मुनिचन्द्र के शिष्य विनयचंद्र हो गये हैं। १६ वीं शताब्दी में भी दो विनयचंद्र नामक जैन कवि हुए है, जिनमें एक श्रावक स्थानकवासी भी है। विवक्षित विनयचंद्र खरतरगच्छीय जिनचंद्रसूरि की परम्परा में हुए है। युगप्रधान जिनचंद्रसूरि मुगलसम्राट अकबर प्रतिवोधक, महान् प्रसिद्ध और प्रभावक आचार्य हुए हैं। कवि ने स्वयं 'उत्तम कुमार चरित्र' में अपनी गुरु परम्परा दी है। उसके अनुसार उनकी गुरु परम्परा इस प्रकार है-युगप्रधान जिनचंद्रसूरि-सकलचन्द्रमणि, अष्टलक्षीकर्ता महोपाध्याय समय सुन्दर, मे विजय, हर्षकुशल, हर्षनिधान, ज्ञानतिलक, विनयचंद्र ।
कवि विनयचंद्र के जन्म के विषय में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं। इतना निश्चित है कि कवि ने गुजरात में रहकर हिंन्दी तथा गुजराती में मिश्रित राजस्थानी
१. जैन गूर्जर कविओ, भाग २, पृ० ३८० ।। २. वही। २. जैन गूर्जर साहित्य रत्नो, भाग १, सूरत, पृ० २१७-२२३ ।