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जैन गूर्जर कवियो की हिन्दी कविता
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उदयरत्न- : (सं० १७४६ - १७६६ लेखनकाल)
१८वीं शताब्दी के ये जैन कवि खेड़ा ( गुजरात ) के रहने वाले थे।१ तपच्छ के विजयराजसूरि की परम्परा में श्री शिवरत्न के शिष्य थे । २ ये बड़े प्रसिद्ध कवि थे । उनका रचनाकाल संवत् १७४६ से १७६६ तक का अनुमानित है।३ श्रीमद् बुद्धिसागर जी के कहने के अनुसार भी ये खेड़ा के निवासी थे और मीयागाम में इनका स्वर्गवास हुआ था । ४ ।।
इन्होने स्थूलीभद्र के नवरस लिखे थे। बाद में आचार्य श्री से फटकार मिलने मे 'ब्रह्मचर्यनी नववार्ड' के काव्यों की रचना की। खेड़ा में तीन नदियों के बीच चार मास तक काडस्सग्ग ध्यान में स्थिर रहे थे। अनेक भावसार आदि लोगों को जैनधर्म के रागी बनाये । संवत् १७८६ में इन्होंने शत्रुजय की यात्रा की थी। उदयरत्न एक वार सं० १७५० में संघ के साथ शंखेश्वर पार्श्वनाथ की यात्रा को गये थे। वहां महाराज श्री ने दर्शन किये विना अन्नादि न ग्रहण करने का अभिप्राय व्यक्त किया। पुजारी ने मन्दिर खोलने से मना कर दिया। उस समय कहते है कवि ने "प्रभातिया" रचा, हार्दिक भाव से प्रभु की स्तुति की और एकद्रम बिजली के कडाके के साथ जिन-मन्दिर के द्वार खुल गये । संघ ने श्री शंखेश्वर पार्श्वनाय के दर्शन किये । इससे कवीश्वर की श्रद्धा और प्रभु के प्रभाव की प्रशंसा मर्वत्र होने लगी।
उदयरत्न को उपाध्याय की पदवी प्राप्त थी। इनकी सब कृतियां गुजराती भाषा में ही रची गई है। गुजराती भाषा में इन्होंने विपुल साहित्य की सर्जना की है। श्री मोहनलाल दलिचन्द देसाई ने अपने 'जैन गूर्जर कविओ' में करीब २० छोटेबड़े ग्रंथों का उल्लेख किया है। इनकी चौवीसी के स्तवन, सरल एवं सरस है । इसके अतिरिक्त मजन-प्रभातिए, श्लोक, स्तवन, स्तुति रास आदि की रचना भी की है । स्तवन और पद नितांत सुन्दर और भाववाही बन पड़े है। इनके सिद्धाचल जी के स्तवन अति लोकप्रिय है । इन्होंने अनेक पद हिन्दी में भी लिखे हैं, जिन पर गुजराती का अत्यधिक प्रभाव है।
___ काम, क्रोध, रागदि का नाश कर प्रभु के ध्यान में एक लय होने के बड़े ही माववाही उपदेग का एक उदाहरण दृष्टव्य है
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१ भजन संग्रह, धर्मामृत संपा० ५० बेचरदासजी, पृ० २४ २ जैन गूर्जर साहित्य रत्नो, माग १, वम्बई, पृ० १७२ ३ वही ४ जैन गूर्जर कविओ, भाग २, पृ० ४१४