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________________ १६० परिचय खंड इनका पद साहित्य भी समृद्ध कहा जा सकता है । प्राप्त पद 'श्रीमद् देवचंद्र' भाग २ में तथा श्री अगरचन्द नाहटा जी मम्पादित 'पंच भावनादि सजाय सार्थ' में संगृहीत है। इनके पद भक्तिरस तथा वैराग्यरस से आपूर्ण है। भक्ति, उपदेश और अपनी आत्मदशा का अद्भुत समन्वय कवि ने किया है। उपदेश देने की कवि की अपनी विशिष्ट शैली रही है। अभ्यासी और शिक्षक दोनों ही कवि एक साथ बनकर आया है । उपदेश की मरल शैली अवलोकनीय हैं-१ "मेरे प्रीउ क्यु न आप विचारी । कहस हो कहसे गुणधारक, क्या तुम लागत प्यारो । १ टेक नजि कुसंग कुलटा ममता की, मनी वयण हमारी जो कछु कहू इनमें तो, मोकू सूस तुम्हारो। २ नेरे." श्रीमद् देवचन्द जी की अत्यंत लोकप्रिय कृति उनकी चौवीमी है । जैन स्तवन माहित्य में तीन चौवीसीयां अत्यन्त लोकप्रिय एवं कला की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रही हैं- उनमें प्रथम आनन्दधन जी की दूसरी यशोविजय जी की तथा तीसरी देवचन्द जी की आती हैं। इनकी चौवीसी भक्ति की निर्झरिणी, काव्यत्व की पुरसरि तथा जैनत्व का निचोड़ बन कर आती है। एक ओर कवि अपने प्रभु को कितना मीठा उपालंभ देता है तो दूसरी ओर तुरन्त विनम्र वन प्रभु की दया-याचना करता है। कवि का प्रभुप्रेम अनुपम है "तार हो तार प्रभु मुज सेवक भणी, जगतमां एटलुसुजभ लीजे । दास अवगुण भयो जाणी पोतातणो, दयानिधि दीन पर दया कीजे ॥" कवि प्रभु का सानिध्य पाने के लिए तरस रहा है। पर अमहाय है, कारण उसके पाम न तो पंख हैं और न अन्तःचक्षु, होवत जो तनु पांग्वडी, आवत नाथ हजूर लाल रे। जो होती चित आंखडी, देखत नित्य प्रभु नूर लाल रे ॥" मक्तिदशा के इन दिव्य उद्गारों मे भाषा सरल, माधुर्य एवं प्रमादगुण सम्पन्न है । पक, उपमादि की छटा देखते ही बनती है । सरल भाषा में दिव्यभावों की अभिव्यक्ति हुई है। श्रीमद् देवचन्द महत् जानी एवं रससिद्ध कवि है। 'द्रव्य प्रकाश में कवि का यही व्यक्तितत्व उभर उठा है। कवि ने ऊंचे' आत्मज्ञान की रचना पद लालित्य और माधुर्य से पूर्ण ब्रजभाषा मे की है । सस्कृत, प्राकृत, ब्रज, हिन्दी तया गुजराती आदि भाषाओं में उत्तम काव्यः कृतियां रचकर - देवचन्द जी ने भापा विकाश की दृष्टि से भी अपना महत् योग दिया है। - -- -- -- ३ पंव भावनादि सज्झाय मार्थ मं० अगरचन्द नाटहा, पृ० १.०, पद ३
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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