________________
जैन मुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
"अज अनादि अक्षय गुणी, नित्य चेतनावान् । प्रणमुपरमानन्द मय, शिवसरूप भगवान् ॥ १ ॥ जाके निरखत संते थिरतासु भाव धरै,
वरे निज मोक्ष पद हरे मव ताव को;" आदि । - कविता के लिए दुःसाध्य विषय से भी कवि की काव्य-प्रतिभा ने मैत्री साध ली है । देवचन्द्र जी की महत् प्रतिमा और महानता के दर्शन तब होते है जब कविजान चरम सीमा पर पहुंच कर भी अपनी लघुता तथा नम्रता बताता है । कवि का आत्मलाघव द्रष्टव्य है
"कीउ बाल मंदमति चित्त सो करे उकती, नम के प्रदेश सब गनि देवो कर से; तैसे में अलपबुद्धि महावृद्ध ग्रंथ मंड्यो, पंडित हसेंगे निज ज्ञान के गहर मौ ॥"
भाषा परिमार्जित ब्रजभाषा है । मुख्यतः 'सवैया इकतीसा" में संपूर्ण काव्य रचित है । यह राग अपनी मधुरता एवं गति के लिए प्रख्यात है। कहीं भी अवैविध्य दोष नहीं।
___अपूर्व अध्यात्मज्ञानी कवि ने इस कृति में अध्यात्म की विविध स्थितियों एवं विषयों का मूक्ष्म से सूक्ष्म वर्गीकरण कर एक मुसंबद्ध वैज्ञानिक पद्धति से तथा मानसशास्त्री की मूक्ष्म निरीक्षण वृत्ति से अध्यात्मज्ञान की उलझनों को सुलझाने का प्रयास किया है।
उपमा उत्प्रेक्षा तथा रूपकादि का प्रयोग स्वाभाविक एवं सुन्दर बन पड़ा है । इसकी प्रासादिकता एवं भाषा मधुर्य इसे उत्तम काव्यों में रख देता है ।
कवि अन्य हिन्दी रचनाओं में साधु समस्या द्वादस दोधक, आत्महित शिक्षा, तथा पदादि हैं।
- "साघु समस्या द्वादस दोधक' १ १२ दोहो की एक छोटी रचना है जिसमें 'मुनिवर चांरित लीन' रहने का सरल उपदेश दिया गया है। कवि का मानना है कि चक्रवर्ती से भी अधिक मुग्व अन्तर्मुखी हो आत्म तत्व का सच्चा ज्ञान और उसकी अनुभूति पाने में है।
आत्महित शिक्षा' एक छोटी रचना है। इसमें आत्मा की स्थिर कर अध्यात्म ज्ञान के अक्षय खजाने को पाने तथा संसारकी मोहदशा से चेतने का सरल उपदेश है।
१ प्रकाशित, पंच भावनादि मजझाय सार्थ, संमा० अगरचन्द नाहटा, पृ० ६८-६९