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परिचय-खंड
राजनगर के संघ ने उन्हें वाचक की पदवी दो । सम्वत् १८१२ में यहीं राजनगर में ६६ वर्ष की आयु में इनका स्वर्गमास हुआ ।
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इनकी समस्त रचनाओं का संग्रह 'श्रीमद् देवचन्द्र' नाम से तीन भागों में में अध्यात्म प्रसारक मंडल, पादरा की ओर से प्रकाशित हो गया है । प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी और गुजराती भाषाओं में इनके अनेक ग्रंथ मिलते हैं। चौवीसी, वीसी स्नानपूजा आदि के स्तवन एवं आगमसारादि जैन समाज में काफी प्रचलित हैं ।
इनके पद भक्तिरस तथा वैराग्य भावना से मरे हुए हैं । इनकी चौवीसी तत्वज्ञान और भक्ति का अखण्ड प्रवाह वन कर आती है | इनकी समस्त रचनाओं में अध्यात्म समान रूप से प्रवहमान है ।
श्री मो० द० देसाई ने छोटे-बड़े कुछ करीब २० ग्रंथों का उल्लेख किया है । १ श्री मणीलाल मोहनलाल पादराकर ने इनकी उपलब्ध कृतियों की संख्या ५८ गिनाई है । २ इनकी हिन्दी कृतियों में 'द्रव्य प्रकाश' प्रसिद्ध है । इसके अतिरिक्त भी 'साधु समस्या द्वादण दोधक', 'आत्महित शिक्षा' तथा कुछ पद प्राप्त हैं । यहां कवि की हिन्दी कृतियों का ही सामान्य परिचय दिया जा रहा ।
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'द्रव्य प्रकाश' इस ग्रंथ की रचना सं० १७६७ पौष वदी १३ को वीकान 'हुई । ३ यह ब्रजभाषा की रचना है । पट द्रव्य निरुपणार्थ सवैया दोहो में रचित यह रचना अध्यात्मरसिक मिटू मल भणसाली आदि के लिए विनिर्मित हुई। इसमें आत्मा-परमात्मा का स्वरूप तथा जीव का स्वरूप समझाता हुआ कवि छ द्रव्यों के स्वरूप की विस्तृत विवेचना करता है । द्रव्य गुण पर्याय, जीव पुद्गल कथन, अष्टकर्म विवरण, उसको निवारणा के उपाय, नवतत्व का स्वरूप, स्यादवाद स्वरूप आदि अनेक महत्व के प्रश्नों का आध्यात्मिक दृष्टि से तथा साथ ही व्यावहारिक दृष्टि से निरूपण हुआ । ब्रजभाषा के माधुर्य में गहन ज्ञान की सुवास भर कवि इसकी आरम्भिक पंक्तियां इन
ने अपनी आत्मसुवास सर्वत्र बिखेर दी है। प्रकार हैं
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१ जैन गुर्जर कविओ, भाग २, पृ० ४७८-४९६ तथा भाग ३ खण्ड २, पृ० १४१७-२०
२ श्रीमद देवचद्रनी विस्तृत जीवन चरित्र तथा देव विलास, म० मो० पादराकर, पृ० ७८८१
३ 'द्रव्य प्रकाश', श्रीमद् देवचन्द भाग २, अध्यात्म प्रसारक मंडल, बम्बई