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परिचय-वंड
रचना है । इसकी रचना सं० १७३६ श्रावण सुदी ५ मंगलवार को हुई थी। ? इसमें कुल ६० पद्य हैं । कवि ने वर्णमाला के बावन अक्षरों प्रभुगुण गान किया है । इसे कवि का सफल नीतिकाव्य कहा जा सकता है। भाषा शैली के उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियां देखिए---
'ध्यान में ग्यान में वेद पुराण में कीरति जाकी सर्व मन मावे; . केशवदास कुंदीजई दोलत भाव सौ साहिब के गुण गावै ।"
असाम्प्रदायिक भावों तथा प्रभावपूर्ण भाषा के कारण यह कविन सवैया मय रचना बड़ी सुन्दर बन पड़ी है। विनयविजय : (सं० १७३६ तक वर्तमान )
आप तपागच्छ के श्री हीरविजयसूरि की परम्परा में उपाध्याय श्री कीतिविजयजी के शिष्य थे । कीर्तिविजय जी वीरमगाम के रहने वाले थे।२ ।।
गुजरात निवासी जैन कवि विनयविजय यशोविजय के समकालीन थे। दोनों सहाध्यायी थे- काशी में साथ रहकर विद्याध्ययन किया था। ३ ये संस्कृत, हिन्दी और गुजराती के प्रसिद्ध ग्रंथकार और सुकवि थे। न्याय और साहित्य में इनकी समान गति थी। इनका एक 'नयकणिका' नामक दर्शन ग्रंथ अंग्रेजी टीका सहित छप चुका है । उपाध्याय यशोविजय तथा आनन्दधन के समकालीन साहित्यप्रेमी, आगम अभ्यासी, समर्थ विद्वान तथा प्रसिद्ध 'कल्पसूत्र सुर्वाधिका' के कर्ता रूप में विनयविजय ने संस्कृत तथा गुजराती में विपुल साहित्य की रचना की।
इस महोपाध्याय का जन्म सं० १६६० - ६५ के आसपास अनुमानित है । ४ और निधन सम्वत् १७३८ वताया है । ५ जन्म स्थान एवं प्रारम्भिक जीवन वृत्त के विशय में पूरी जानकारी का अभाव है। इनके पिता का नाम तेजपाल तथा माता का नाम राजश्री था। इनकी दीक्षा सं० १६८० के आसपास हुई थी।
इनका 'श्रीपाल रास' ६ अतिप्रसिद्ध, लोकप्रिय और अन्तिम ग्रंथ है, जिसे १ वही, पृ० ३५४ २ वही, पृ० ४ की पाद टिप्पणी ३ जैन स्तोत्र सन्दोह, प्रथम भाग मुनि चतुरविजय संपादित, प्रस्तावना, पाद टिप्पणी,
पृ० ६३ ४ जैन गूर्जर साहित्य रत्नो, भाग १, सूरत, पृ० ८३ ५ आनन्दघनां पदो, मोती गिर० कापडीया, आवृ० २, पृ० ७६ ६ (अ) राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज, भाग ३, पृ० २१२ (ब) श्रीपाल रास, प्रका० भीमशी माणेक