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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
भाषा पर गुजराती का प्रभाव स्पष्ट लक्षित है। भाषा-शैली के उदाहरण. के ..लिए एक पद्य द्रष्टव्य है- ... . ... . . . . . . . . . . .: 'विवाह पटल ग्रंथ छे मोटो, कहितां कवही नावे त्रोटो .:.
मूरख लोक समझावण सारु. ए अधिकार कीयो हितकार ॥५५॥ ... : मानमुनि : ( स० १७३१-१७३६) ... . आप नवल ऋषि के शिष्य थे। शेष इतिवृत्त अज्ञात है। ...:
इनकी रचित 'संयोगबत्तीसी', १ 'ज्ञानरस' २, 'सवैया मान बावनी' ३ आदि . कृतियाँ प्राप्त है । इनकी रचनाओं पर गुजराती का विशेष प्रभाव देखते हुए कवि । का गुजरात से दीर्घकालीन संबंध का अनुमान दृढ होता है। श्री मो० ८० देसाई ने भी इन्हें जन गूर्जर कवियों में स्थान दिया है। .. -:-.
'ज्ञानरस' की रचना सं० १७३६, वर्षाऋतु आनन्दमास में हुई थी। इस कृति में १२६ पद्य हैं । आध्यात्म और वैराग्य का सरल उपदेश कृति का लक्ष्य है । भाषाशैली की दृष्टि से एक उदाहरण प्रस्तुत है- ... ... ... .. .. - "अनंत तुह अनहद, ग्यान ध्यान मह गावें :
भात तांढी नह मान, प्रभु नात जात न पावें । . . नाद विद विणं नाम, रूप रंग विण रत्ता; . .
आदि अनंन्द नहीं ऐम ध्यान योगेसर धरता।" केशवदास : ( सं० १७३६ - १७४५ ) ...हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि केशवदास. से ये जैन कवि. केशवदास भिन्न हैं । आप खरतरगच्छ की जिनभद्र शाखा में हुए लावण्यरत्न के शिष्य थे । ४ इनका विशेष
इतिवृत्त ज्ञात नहीं। . . . इनकी गुजराती कृति 'वीरमाण उदयमाण रास' को देखते हए तथा इनकी हिन्दी रचनाओं में गुजरात में प्रचलित देशज शब्दों के प्रयोग को देखकर कवि का गुजरात-निवासी होने का अनुमान किया जा सकता है। ... ... . . . . 'शीतकार के सवैया' तथा 'केशवदास बावनी' इनकी हिन्दी रचनाएं हैं। दोनों ही खेड़ा के भण्डार में सुरक्षित हैं। इनकी 'बावनी' अधिक लोकप्रिय एवं उत्तम १ जैन गूर्जर कविओ, भाग २, पृ० २८२ : . २ वही, भाग ३, खण्ड २, पृ० १२८० । ३ नांगरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ६७, अङ्क ४ ४ जैन गूर्जर कविओ, भाग २, पृ० ३३६ ।