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________________ परिचय संट इन्होंने दो चौवीसियों की रचना की है। मापा बड़ी ही सरल एवं सादी है। विभिन्न राग एवं देगियों में इनके रचे स्तवन भी मिलते हैं। इनका विहार गुजरात में अधिक रहा। इनकी प्राप्त ६ रचनाएं भी मरुच, सूरत और रानेर आदि स्थानों में रची गई है। ___ इनकी चौवीसी१ और वीसीर के अधिकांश स्तवन हिन्दी में रचे हैं । इन स्तवनों में कवि का भक्त हृदय अंकित हो उठा है। "साहिब कब मिले ससनेही, प्यारा हो, साहिब काया कामिनि जीउसे न्यारा, ऐसा करत विचारा हो । सा० १ सुन सांइ जब आन मिलावे, नव हम मोहनगारा हो । सा०२ में तो तुमारी खिजमतगारी, झूठ नहिं जे लारा हो । सा० ३" भक्त के मन-मन्दिर में प्रभु का वास है, और किसी के लिए स्थान नहीं। प्रभु के मुख-पंकज पर कवि का मन-भ्रमर मुग्ध हो उठा है "मो मन भितर तुहि विराजे और न आवे दाय; तुझ मुख-पंकज मोहियो, मन ममर रहियो लोभाय । सनेही साहिब मेरा वे।" ए भक्त-हृदय का दैन्य और गुणानुराग अपनी सरल एवं संगीतात्मक शैली में मुखर हो उठा है। कवि संगीत का तो गहरा अभ्यासी लगता है। इन्होंने 'महावीर राग माला' की रचना छत्तीस रागों में की है। चौवीसी के स्तवन बड़े ही सरल, सरस एवं भाववाही बन पड़े हैं। अभयकुशल : (सं० १७३० आसपास) __ ये खरतरगच्छ की कीर्तिरत्नसूरि शाखा के ललितकीर्ति के शिष्य पुण्यहर्प के शिष्य थे ।३ इनकी एक गुजराती कृति का उल्लेख श्री मो० द० देसाई ने किया है, जिसकी रचना महाजन नगर में संवत् १७३० में हुई थी।४ इनके संबंध में विशेष जानकारी नहीं मिलती। इनकी एक हिन्दी रचना 'विवाह पटल भाषा' प्राप्त है, जिसकी एक प्रति अभय ग्रन्थालय, बीकानेर में सुरक्षित है। "विवाह पटल भाषा" कवि की ५६ पद्यों में रचित एक हिन्दी कृति है। १. प्रकाशित चोवीसी वीशी संग्रह, आणंदजी कल्यानजी, पृ० १४४-१७१ । २. वही, पृ० ७३८-७४८ । ३. जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, भाग २, पृ० १२६५ । ४. वही।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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