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- परिचय खंड
इसकी एक प्रति अभय पुस्तकालय, बीकानेर में है । इसे मुनि हर्पसमुद्र ने नापासर में सं० १७४१ आसो वदी १४ को लिखा था। १ इसके प्रारम्भिक सर्वये की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं"प्रणमि चरणयुग पास जिनराज जू के,
विधिन के चूरण हैं पूरण है आस के। दिढ दिल माझि ध्यान धरि श्रुत देवता को,
सेवैत संपूरत है मनोरथ दास के ॥" 'नवतत्व चौपाईं का निर्माण सं० १७४७ वैशाख वदी १३ गुरुवार को हीसार में हुआ था । २ इसमें ८२ पद्य हैं । इसमें सरल उपदेश और भक्ति कवि का मुख्य विषय है । इसकी दो प्रतियों का उल्लेख श्री मोहनलाल दलिचंद देसाई ने किया है, वे क्रमश: सं० १७६० और १८०६ की लिखी हुई हैं ३ इसकी एक प्रति अभय जैन पुस्तकालय में सुरक्षित है।
'उपदेश वत्तीसी' में ३२ पद्य है । ४ भक्ति, अध्यात्म और उपदेश से संबंधित यह रचना है । कवि ने आत्मा को संबोधित कर उसे संसार के माया-मोह के विकृत पथ से विलग रहने का उपदेश दिया है। एक उदाहरण देखिए
"आतम राम सयाणे तूं झूठे भरम भुलाना किसके माई किसके भाई, किसके लोक लुगाई जी, तून किसी का को नहीं तेरा, आपो आप सहाई ॥१॥"
'चेतन बत्तीसी' भी ३२ पद्य है। इसका निर्माण संवत् १७३६ में हुआ था। ५ इसमें संसार की माया, मृगतृष्णा एवं भ्रमणा में भटकी चेतनात्मा को साव' धान करने का प्रयास किया गया है । एक पद्य दृष्टव्य है
"चेतन चेत रे अवसर मत चूके. सीख सुपेतूसाची! - . - गाफिल हुई जो दाव गमायो. तो करसि बाजी सहु काची ॥१॥"
देशान्तरी छन्द' - कृति भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति से सम्बन्धित है। इसमें पद्य ३६ है । यह रचना 'त्रिभंगी' छंद में रचित है। इसकी एक प्रति पाटण ज्ञान भण्डार में सुरक्षित है। १ वही, पृ० १५२ २ जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खण्ड २, पृ० १२५२ ३ वही, पृ० १२५३ ४ वही, पृ० १२५० ५. चतन वत्तीसी, जन गूर्जर कविओ, माग ३, खंड २, पृ० १२५०
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